Friday, July 9, 2021

अंगना तो हैं ...

(१) मकोय :-

तुम्हारी 
छोटी-छोटी 
बातें,
खट्टी-मिटटी 
यादें,
हैं ढकी,
छुपी-सी,
समय की
सख़्त
परत में .. शायद ...

मानो ..
लटके हों
गुच्छ में,
अपने
क्षुप से,
काले-रसीले,
खट्टे-मीठे
मकोय
शुष्क
कवच में .. बस यूँ ही ...



(२) शब्दकोश से चुराए कुछ शब्द :- 

(i)

अलि को देख कर अली ने अपनी अली से ये पूछा -
"बोलो अली ! हर बार मुझे छेड़ता है क्यों ये बावरा ?"

(ii)

कहीं बंदिशों की रीत, सज़ा हैं,
कहीं बंदिशों से, गीत सजा है।
 
【१. बंदिश = प्रतिबंध / पाबंदी / रोक।
       सज़ा = दंड।
  २. बंदिश = किसी राग विशेष में सजा एक निश्चित सुरसहित रचना।
       सजा = सुसज्जित।】

(iii)

साहिब ! ये दौर भी भला कैसा गुजर रहा है ?
अंगना तो हैं घर में हमारे, वो अँगना कहाँ है ?




8 comments:

  1. नमस्कार सर, बहुत अच्छी रचना है। यादें होती ही ऐसी है।

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    1. जी ! शुभाशीष संग आभार आपका ...

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  2. हा हा चोरी चोरी यहां भी? :) ;)

    सुन्दर।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...
      (😂😂 आप ही के डर से तो Disclaimer की तरह पहले ही खुलेआम एलान कर दिए हैं कि "शब्दकोश से चुराए कुछ शब्द" .. वर्ना आप बोलेंगे "इधर का, उधर का" 😢😢😢

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  4. मकोय आपने खूब याद दिलाया कभी बचपन में खाये थे ।
    सुंदर बिम्ब लगा ।

    अली / यमक अलंकार का बेहतरीन प्रयोग ।
    बंदिश - सटीक भाव
    आज कल आँगन कहाँ ? बहुत खूब

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका .. वैसे .. बचपन में ही क्यों भला ? अभी भी तो बसंत के आसपास बाज़ारों में मिलता है।
      अलंकार का विशेष ज्ञान तो नहीं, बस मस्ती सूझी और शब्दकोश से कुछ शब्द चुरा कर थोड़ी चुहलबाजी कर बैठे .. बस यूँ ही ...
      एक- एक पँक्तियों पर नज़र फिराने के लिए मन से आभार आपका 🙏🙏

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