Thursday, November 26, 2020

कागभगोड़े

सदियों से हो मौन खड़े और कहीं बैठे ,

कँगूरे वाले ऊँचे-ऊँचे भवनों के भीतर ,

पर देखो नीले आसमान के नीचे खड़े 

कागभगोड़े भी हैं तुझ से कहीं बेहतर।

मौन हो भी कमोबेश करते  हैं जो रक्षा,

फटकते पास नहीं फ़सलों के नभचर।


आते जो खुले आसमान तले तुम भी ,

करने कुछ चमत्कार बस यूँ ही ... ताकि ..

होती मानव नस्लों की फसलों की रक्षा ,

होता हरेक दुराचारी का दुष्कर्म दुष्कर।

प्रभु ! तभी तो कहला पाते तुम .. शायद ...

मौन कागभगोड़े से भी बेहतर मौन ईश्वर ...


【 कागभगोड़ा - बिजूका / Scarecrow. 】








18 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ नवंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।

    सादर
    धन्यवाद।

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  2. व्वाहहहह...
    बेहतरीन..
    जानदार रचना
    सादर..

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  3. Replies
    1. बहुत सुंदर सृजन।वाआह।बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏

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    2. जी ! आभार आपका ...

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    3. जी ! आभार आपका ...:)

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  4. वाह, बिल्कुल सही लिखा आपने।

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  5. कुछ दुख अपना, कुछ दुख उनका, बाकी ईश्वर को ।

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    1. काश ! ईश्वर भी इन्सानी रूप में यहाँ होते ...

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  6. वाह बेहतरीन।
    सुंदर रचना।
    सादर

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