सदियों से हो मौन खड़े और कहीं बैठे ,
कँगूरे वाले ऊँचे-ऊँचे भवनों के भीतर ,
पर देखो नीले आसमान के नीचे खड़े
कागभगोड़े भी हैं तुझ से कहीं बेहतर।
मौन हो भी कमोबेश करते हैं जो रक्षा,
फटकते पास नहीं फ़सलों के नभचर।
आते जो खुले आसमान तले तुम भी ,
करने कुछ चमत्कार बस यूँ ही ... ताकि ..
होती मानव नस्लों की फसलों की रक्षा ,
होता हरेक दुराचारी का दुष्कर्म दुष्कर।
प्रभु ! तभी तो कहला पाते तुम .. शायद ...
मौन कागभगोड़े से भी बेहतर मौन ईश्वर ...
【 कागभगोड़ा - बिजूका / Scarecrow. 】
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ नवंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी ! आभार आपका ...
Deleteव्वाहहहह...
ReplyDeleteबेहतरीन..
जानदार रचना
सादर..
जी ! आभार आपका ...
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।वाआह।बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏
Deleteजी ! आभार आपका ...
Deleteजी ! आभार आपका ...:)
Deleteवाह, बिल्कुल सही लिखा आपने।
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteजी!आभार आपका ...
Deleteकुछ दुख अपना, कुछ दुख उनका, बाकी ईश्वर को ।
ReplyDeleteकाश ! ईश्वर भी इन्सानी रूप में यहाँ होते ...
Deleteनये विषय पर सुन्दर रचना।
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteवाह बेहतरीन।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
सादर
जी ! आभार आपका ...
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