Saturday, May 30, 2020

मोद के मकरंद से ...

मेरे
अंतर्मन का
शलभ ..
उदासियों की
अग्निशिखा पर,
झुलस जाने की
नियति लिए
मंडराता है,
जब कभी भी
एकाकीपन के
अँधियारे में।

तभी त्वरित
वसंती सवेरा-सा
तुम्हारे
पास होने का
अंतर्बोध भर ही,
करता है प्रक्षालन
शलभ की
नियति का
उमंगों के
फूलों वाले
मोद के मकरंद से।

बस ...
पल भर में
बन जाता है,
अनायास ही
धूसर
बदरंग-सा
अंतर्मन का
शलभ ..
अंतर्मन की
चटक रंगीन
शोख़ तितलियों में।








10 comments:

  1. बहुत सुन्दर। पत्रकारिता दिवस की बधाई हो।

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    1. जी ! आभार आपका ... आपको भी बधाई !...

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  2. धूसर शलभ से शोख तितली...
    मन स्पर्श करते सुंदर भावों का प्रवाह।इ

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 01 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. Replies
    1. जी ! आभार आपका ...:) आप कैसे हैं ? :)

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  5. उत्कृष्ट रचना👌👌👌👌

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    1. जी ! आभार आपका ... रचना/विचार तक आने के लिए ...

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