Friday, November 22, 2019

और 'बाइनाक्युलर' भी ...

मुहल्ले की गलियों में या फिर
शहर के चौक-चौराहों पर
मंदिरों में .. पूजा-पंडालों में
मेलों में .. मॉलों में भी तो अक़्सर
टपोरियों .. लुच्चों ..
लिच्चड़ों की घूरती नज़र
वैसे तो कभी-कभी
तथाकथित कुछ-कुछ
सज्जनों की भी
अकेले या समूह में
दिख जाती हैं घूरती

पड़ता नहीं फ़र्क उम्र से
बारह की हो या फिर
हो कोई बहत्तर की
हो उनकी छोटी बहन-सी
या युवा पत्नी की जैसी
या फिर उनकी अम्मा की उम्र की
प्राथमिक स्कूल जाती हुई
नाबालिग लड़कियाँ हों या
नगर-निगम वाली औरतें
सुबह-सवेरे सड़क बुहारती
या काम पर जाती कोई
बाई काम वाली
या कोई शिक्षिका पढ़ाने वाली
या सिर पर टोकरी उठाए
कोई फेरी वाली .. या फिर ...
रोज मोर्निंग वॉक में
साथ-साथ चलती साथ मेरे
सुबह-सवेरे धर्मपत्नी मेरी

यूँ तो होते हैं ये फक्कड़
पर लिए फ़िरते हैं एक साथ
मानो बहसी आँखों में अपनी
'सेक्सटेंट' .. 'फेदोमीटर' ..
'एक्सरे मशीन' और 'बाइनाक्युलर' भी
हाँ ... सब यंत्र एक साथ ही
बस होता नहीं है शायद
पास इनके एक 'स्टेथिस्कोप' ही ...


4 comments:

  1. सही कहा सुबोध भाई कि जिनकी निगाहे गलत ही देखना चाहती हैं वे हर नारी को गलत ही निगाहों से देखते हैं। सुंदर प्रस्तुति।

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    1. रोज-रोज हम पुरुष भी इन निगाहों को अपने लोगों के लिए झेलते हैं ...

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 22 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. नमन और मन से आपका आभार यशोदा जी ! ...

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