Sunday, October 20, 2019

होठों के 'क्रेटर' से ...

मन के मेरे सूक्ष्म रंध्रों ...
कुछ दरके दरारों ...
बना जिनसे मनःस्थली भावशून्य रिक्त ..
कुछ सगे-सम्बन्धों से कोई कोना तिक्त
जहाँ-जहाँ जब-जब अनायास
अचानक करता तुम्हारा प्रेम-जल सिक्त
और ... करता स्पर्श
कभी वेग से .. कभी हौले-हौले ...
मन बीच मेरे दबे हुए
कुछ भावनाओं के गर्म लावे
कुछ चाहत के गैस और
साथ चाहे-अनचाहे
अवचेतन मन के अवसाद के राख
तब-तब ये सारे के सारे
हो जाना चाहते हैं बस .. बस ...
बाहर छिटक कर जाने-अन्जाने
आच्छादित तुम्हारे वजूद पर
होठों के 'क्रेटर' से
चरमोत्कर्ष की ज्वालामुखी बन कर ...

16 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 22 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपका हार्दिक आभार और नमन यशोदा जी !

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-10-2019) को     " सभ्यता के  प्रतीक मिट्टी के दीप"   (चर्चा अंक- 3496)   पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. नमन शास्त्री जी ! हार्दिक आभार आपका मेरी रचना को निष्पक्ष भाव से स्वीकार कर चर्चा-मंच पर साझा करने के लिए ...

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  4. वाह! अद्भुत प्रयोग।

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    1. प्रेमसिक्त नमन और हार्दिक आभार आपका ...

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  5. वाह लाजवाब लेखन शैली

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  6. हार्दिक आभार आपका सराहना हेतु ... पर लाजवाब जैसा कुछ भी नहीं ... बस यूँ ही ...

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  7. इन पंक्तियों का सच ..बहुत ही गहरे उतर गया
    बाहर छिटक कर जाने-अन्जाने
    आच्छादित तुम्हारे वजूद पर
    होठों के 'क्रेटर' से
    चरमोत्कर्ष की ज्वालामुखी बन कर

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  8. हार्दिक आभार आपका बंधु ....

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  9. वाह!!!
    अद्भुत लाजवाब...

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    1. हार्दिक आभार आपका ...

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  10. Replies
    1. नमन और हार्दिक आभार जोशी जी ... आपके "सुन्दर" विशेषण ने रचना की सुन्दरता को अलंकृत कर दिया ...

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  11. आपकी रचनाओं के बिंब सदैव अचंभित करते है मुझे।
    कितनी तन्मयता से भावों को गढ़ा है आपने।
    शब्द अनायास मन छू जाते है।
    अति मनमोहक सृजन।

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    1. हार्दिक आभार आपका ... आपकी प्रतिक्रियाएँ तो मेरी रचनाओं से भी ज्यादा मनमोहक होती हैं ....खैर ! बहरहाल ... तन्मयता जैसी कोई भी बात नहीं ... ये तो बस यूँ ही ....

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