प्रत्येक वृहष्पतिवार को यहाँ साझा होने वाली साप्ताहिक धारावाहिक बतकही- "पुंश्चली .. (१)" से "पुंश्चली .. (३४)" तक के बाद पुनः प्रस्तुत है, आपके समक्ष "पुंश्चली .. (३५) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" .. बस यूँ ही ... :-
गतांक का आख़िरी अनुच्छेद :-
माखन चच्चा - " कैसे मुँह में कुछ जाएगा बेटा, जब मुँह का निवाला आँखों के सामने ही गलत दोष मढ़ कर छीना जा रहा हो .. "
अब रेशमा और मन्टू के साथ-साथ माखन पासवान भी बेवकूफ़ होटल की ओर जा रहे हैं। इनके यहाँ से जाने के साथ-साथ यहाँ की उपस्थित भीड़ भी छंटने लगी है।
गतांक के आगे :-
रेशमा होटल में प्रवेश करते हुए अपनी टोली को प्रतिक्षारत देख रही है। एक नज़र अपनी टोली पर डालने के बाद अब 'वाश बेसिन' की ओर इशारा करते हुए माखन चच्चा को हाथ धोने के लिए बोल रही है। साथ में स्वयं और मन्टू भी, दोनों उसी ओर क़दम बढ़ा चले हैं। तीनों अपने-अपने हाथ धोकर रेशमा की टोली की ओर जा रहे हैं, जहाँ पहले से ही उसकी टोली अपने-अपने हाथों की साफ़-सफ़ाई करके रेशमा की बाट जोह रही थी।
रेशमा - " तुम लोगों को खा लेना चाहिए था ना .. "
हेमा - " ऐसे कैसे खा लेते आपके बिना .. गुरु के बिना भी भला .. "
रेशमा - " अच्छा-अच्छा ! .. अब तो आ गयी ना मैं .. अभी जल्दी-जल्दी खा लो .. जिसको भी जो कुछ खाना है। "
रमा - " ये भी कोई बात हुई .. साथ खाने आये हैं तो सब मिलकर एक साथ एक-सा खाना खायेंगे हमलोग .."
रेशमा - " ये भी सही है, पर .. अब आज आगे अगला 'नर्सिंग होम' जाने का 'प्रोग्राम' 'कैंसिल' .."
सुषमा - " वो क्यों भला ? "
हेमा - " गुरु हैं हमारी .. कुछ भी फ़रमान जारी कर सकती हैं। हमको मानना ही होगा। है कि नहीं ? .."
रमा - " फ़रमान तक तो ठीक है .. बस्स ! .. कोई फ़तवा ना जारी करें .. "
हेमा और रमा की चुटकी भरी बात पर रेशमा की पूरी टोली हँस पड़ी है। सिवाय रेशमा के .. मन्टू के और स्वाभाविक तौर पर माखन पासवान के।
सुषमा - " और .. आप वापस आकर बतायीं भी नहीं कि .. उधर चिल्ल-पों किस बात की मची हुई थी। कोई दुर्घटना घटी है क्या ? .. और ये सुबह-सुबह माखन चच्चा आपको कहाँ मिल गए ? "
रेशमा - " वही तो बतलाने वाली थी तुमलोगों को .. पर अभी तुमलोगो को तो हँसी सूझ रही है ? देखो ! .. माखन चच्चा को .. तुम लोगों को उनका दुःख नहीं दिख रहा क्या ? .. "
सुषमा - " वो तो हम पूछे ही अभी आपसे इनके बारे में .. "
रेशमा - " इनके एकलौते बेटे का जो 'केस' चल रहा था ना .. "
हेमा - " हाँ- हाँ .. तो क्या हुआ ? "
रेशमा - " आज उसी का फ़ैसला आने वाला है और .. हो सकता है, कि .. "
माखन पासवान - " हम वहीं पर जा रहे हैं बेटा .. अब हम्मर (हमारा) मंगड़ा जेल की गाड़ी में आने ही वाला होगा .."
मन्टू - " आप सुबह से हलकान हो रहे हैं बिना खाए-पिए .. बिना मुँह जुठाए हुए आप को नहीं जाने देंगे अभी .. "
माखन - " पर अभी कुछ भी मुँह में डालने का मन नहीं कर रहा है बेटा .. "
रेशमा - " अच्छा .. पहले बैठिए तो सही .. अभी वहाँ समय लगेगा .. तब तक आप हम लोगों के साथ खा लीजिए .. अगर खायेंगे नहीं तो अपने मंगड़ा के लिए कैसे लड़िएगा आप ? .."
रेशमा और मन्टू मिलकर किसी तरह अपने माखन चच्चा को अब खाने के लिए तैयार कर लिए हैं। रेशमा से बात करके अब सुषमा 'काउंटर' पर जाकर सबके लिए सादी (शाकाहारी) थाली का 'ऑर्डर' दे रही है।
अब सबके सामने थाली आ भी गयी है। थोड़ी देर में सभी के खा लेने के बाद रेशमा स्वयं भुगतान करके सभी को लेकर कचहरी की तरफ जा रही है।
रेशमा - " ये बलात्कार के लिए अपने देश में आज भी .. जो भी कानून और सजा है .. कम है। "
माखन पासवान - " ना बेटा .. हम्मर मंगड़ा कोई बलात्कार नहीं किया है .. "
रेशमा - " ना- ना .. ना चच्चा .. हम मंगड़ा की बात नहीं कर रहे। हमको तो पता ही है, कि वह निर्दोष है। हम तो देश-समाज की बात कर रहे है चच्चा .."
मन्टू - " किस तरह कानून और सजा कम है आज भी अपने देश में ? .. अब तो हमारे देश में दिल्ली के निर्भया कांड के बाद संविधान संशोधन करके इस ज़ुर्म के लिए कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान लाया गया है। "
रेशमा " हमारा मतलब है, कि .. आये दिन केवल महिलाओं का ही बलात्कार नहीं होता, पुरुष और किन्नर भी तो इस के शिकार होते हैं .. और तो और .. कई मानसिक विक्षिप्त लोग तो मौका मिलते ही .. मुर्दे तक का बलात्कार कर लेते हैं। "
हेमा - " छिः .. छि-छि .. दुनिया में कैसे-कैसे लोग हैं ? "
रेशमा - " और .. मजे की बात ये है कि इनके लिए अपने देश में आज भी कोई भी कानून नहीं हैं। "
रमा - " अच्छा ! "
रेशमा - " पति-पत्नी के बीच भी कभी-कभी ज़बरन बनाए गए यौन संबंध को बलात्कार माना जाना चाहिए, परन्तु इसे भी कानूनन बलात्कार नहीं माना जाता .. "
रमा - " सबसे तो आश्चर्यजनक तो लगता है, ये सोच कर कि एक शव से भला लोग किस प्रकार बलात्कार करने की सोचते भी होंगे या करने की हिम्मत करते हैं .."
रेशमा - " दरअसल ये एक गंभीर मानसिक बीमारी है, जिसको 'नेक्रोफिलिया' कहा जाता है। इसके लिए भारत में तो नहीं पर .. ब्रिटेन, कनाडा, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में तो सजा वाले कानून हैं .. "
【आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को .. "पुंश्चली .. (३६) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】