आना कभी
तुम ..
किसी
शरद पूर्णिमा की,
गुलाबी-सी
हो कोई जब
रूमानी,
नशीली रात,
लेने मेरे पास
रेहन रखी
अपनी
साँसें सोंधी
और अपनी
धड़कनों की
अनूठी सौग़ात।
दिन के
उजाले में
पड़ोसियों के
देखे जाने
और फिर ..
रंगेहाथ हमारे
पकड़े जाने का
भय भी होगा।
शोर-शराबे में,
दिन के उजाले में,
रूमानियत
भी तो यूँ ..
सुना है कि
सिकुड़-सा
जाता है शायद।
दरवाजे पर
तो है मेरे
'डोर बेल',
पर बजाना
ना तुम,
धमक से ही
तुम्हारी
मैं जान
जाऊँगा
जान ! ...
खुलने तक
दरवाजा,
तुम पर
संभाले रखना
अपनी जज़्बात।
यक़ीन है,
मुझे कि तुम
यहाँ आओगी
सजी-सँवरी ही,
महकती
हुई सी,
मटकती
हुई सी,
फिर अपनी
बाँहों में
भर कर
मुझको,
मुझसे ही
लिपट जाओगी,
लिए तिलिस्मात।
पर मुझे भी
तो तनिक
सजने देना,
तत्क्षण हटा
खुरदुरी बढ़ी
अब तक की दाढ़ी,
'आफ़्टर शेव'
और 'डिओ' से
महकता हुआ,
सिर पर उगी
चाँदी के सफ़ेद
तारों की तरह,
झक्कास सफ़ेद
लिबास में खोलूँगा
दरवाजा मैं अकस्मात।
जानता हूँ
कि .. तुम
ज़िद्दी हो,
वो भी
ज़बरदस्त वाली,
जब कभी भी
आओगी तो,
जी भर कर प्यार
करोगी मुझसे,
सात फेरे और
सिंदूर वाले
हमारे पुराने
सारे बंधन
तुड़वा दोगी
तुम ज़बरन।
जागने के
पहले ही
सभी के,
हो जाओगी
मुझे लेकर
रफूचक्कर,
तुम्हारे
आगमन से
प्रस्थान
तक के
जश्न की
तैयारी
कितनी
भी हो
यहाँ ज़बरदस्त।
यूँ तो
इक बग़ल में
मेरी सोयी होगी
अर्धांगिनी
हमारी,
हाँ .. मेरी धर्मपत्नी ..
तुम्हारी सौत।
फिर भी ..
दूसरी बग़ल में
पास हमारे
तुम सट कर
सो जाना,
लगा कर
मुझे गले
ऐ !!! मेरी प्यारी-प्यारी .. मौत .. बस यूँ ही ...
.. बस यूँ ही ... 】
( कृपया इस गीत का वीडियो देखने-सुनने के लिए इसके Web Version वाला पन्ना पर जाइए .. बस यूँ ही ...)
मृत्यु शाश्वत सत्य है,मृत्यु को प्रेयसी मानकर स्वागत करना एक कवि की बहुत सुंदर कल्पना हो सकती है किंतु असमय मृत्यु आह्वान नकारात्मकता प्रतीत होती है।
ReplyDeleteआप असहमत होंगे मेरे कथन से किंतु फिर भी
चंद पंक्तियाँ आपकी रचना के लिए-
अभी दिवस के प्रहर है शेष
मान ले स्वयं को मनु विशेष
चाहो अगर बदल सकते हो,
अपने कर्मों से विकृत परिवेश
क्यूँ बनना तुझे अस्थि-फूल
जीवन यह मोती,नहीं है धूल
मृत्यु गीत अंतिम हस्ताक्षर
क्यों मान रहा ढाई आखर ?
----
प्रणाम
सादर।
जी! नमन संग आभार आपका .. सबसे पहले तो ..
Deleteश्वेता जी !
आप को एक "मनुहार", ये .. "आह्वान" क्योंकर लगा भला .. कुँवारी हिंदू कन्याएँ प्रायः उत्तम भावी पति के लिए शिवरात्रि व्रत के तहत उपवास करती हैं, इसका थोड़े ही ना मतलब होता है, कि उनको तत्क्षण पति मिल ही जाता है। उनकी "गुहार" की पूर्ति तो यथा समय ही होती है .. शायद ...
वैसे ही ये इक अदा भरी मनुहार भर है, आनी तो उसे यथा समय ही है .. अब ऐसे में आपको नकारात्मकता दिखना , आपकी नकारात्मक दृष्टिकोण को दृष्टिगोचर करता है .. शायद ...
"आप असहमत होंगे मेरे कथन से किंतु फिर भी .." लिख कर मुझे शायद हठी का प्रमाण पत्र देना चाह रही हैं, पर ऐसा भी नहीं है .. अगर विषय तर्कपूर्ण होकर सन्तुष्ट कर पाता हो तो सहमति ना जताने में अपनी हेटी ही होगी और दूसरी ओर तर्कहीन बातों के लिए आँखें मूँद कर अंधानुकरण में सहमत हो जाना प्रकृति की हेटी होगी .. शायद ...
ख़ैर ! .. आपने इसी बहाने अच्छी भावपूर्ण और संदेशात्मक पंक्तियाँ रचीं हैं .. यूँ ही रचती रहें .. बस यूँ ही ...
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteआपकी यह रचना पढ़ते हुए अपनी कविता याद आ गयी । इसी भाव भूमि पर लिखी गयी " मैं प्रेम में हूँ " ।
ReplyDeleteअभी हँसी आ रही क्यों कि इस पर श्वेता मुझसे भी काफी उलझ चुकी हैं ।😄😄😄😄
वैसे बहुत शानदार अभिव्यक्ति है ।
अंत तक लगता रहा कि रिश्तों का रिप्लेसमेंट हो रहा । लिखा भी था न भावनाओं से जुड़े रिश्ते कभी खत्म नहीं होते । 😆😆😆😆
बेहतरीन रचना ।
जी ! नमन संग आभार आपका .. आज मैं बस तनिक भर आपके "गीत" और "मोती" को झाँकने का प्रयास तो किया, पर "मैं प्रेम में हूँ" नहीं खोज पाया .. अफ़सोस .. काश पढ़ पाता !!!
Deleteरही बात श्वेता जी की, तो वह बेवजह आम को इमली समझ कर अपना दाँत खट्टा कर लेती हैं (मुहावरे वाला नहीं😂😂).. शायद ...
यही "अंत तक" वाली भ्रांति ही इस बतकही की प्राण है शायद .. हम इसे साहित्यिक (😭😭😭) "भ्रांति रस" (😃😃😃) कह सकते हैं ना !? .. बस यूँ ही ...
आपकी लिखी रचना गुरुवार 15 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
जी ! नमन संग आभार आपका संगीता जी ! ...
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletehttps://geet7553.blogspot.com/2021/03/blog-post_22.html?m=1
ReplyDeleteआपकी रचना "मैं प्रेम में हूँ" और .. उस पर आयी प्रतिक्रियाओं को पढ़ने के बाद , कहने के लिए कुछ शेष बचता ही नहीं कि, जो कहा/लिखा जाए .. बस ! ... जिस दिन भी आ जाये "वो" अपने समय पर, हँस कर आलिंगनबद्ध होने के लिए, प्रतीक्षारत रहना है .. ना कि मायूस हो कर .. बस यूँ ही ...
Delete(और हाँ ! .. ☺ अलग से अपने लिए हम कोई पोटली नहीं सहेज रहे हैं , आपकी पोटली से काम चला लेंगे ..)
कमाल कर दिया सर आपने तो! कहाँ से उठाया और कहाँ ले जाके छोड़ा! 😆
ReplyDeleteप्रारंभ में तो खुद को चरित्रहीन शख्स की तरह पेस करते हुए लोगों को खुद के बारे में नकरात्मक सोचने पर मजबूर कर दिया,पर अंत में सब की सोच को धराशायी कर दिया! बहुत ही शानदार सृजन
शुभाशीष संग आभार तुम्हारा मनीषा ..
Deleteसही कहा तुमने .. ख़ैर है कि तुमने उठा के छोड़ने की बात की, पटकने की नहीं 😆😆
इसीलिए तो वीर रस, श्रृंगार रस की तरह इसका नामकरण किये हैं - "भ्रांति रस" .. बस यूँ ही ...
नमस्कार सर, कभी कभी अपने दिल की बातों को कहते कहते कवि बातो को कही और मोड़ देता है।बहुत अच्छी रचना है।
ReplyDeleteसुनीता, शुभाशीष संग आभार तुम्हारा ...
Delete(मैं कोई कवि-ववि नहीं हूँ, ये ध्यान रखना ...☺)
नमस्कार सर, मुझे जो लगा वो मैँने लिख दिया। लेकिन आपको लगता है कि आप कवि नही है तो ये आपका अपना विचार है।
Delete.. शायद ...☺
Deleteवाह!प्रेयसी मृत्यु का सुंदर स्वागत 👌
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबहुत सुंदर, बहुत कोमल, भावुक कर देने वाली रचना..🙏
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
ReplyDeleteकाव्य के नवरस में एक दसवें कथित' भ्रांति रस 'में रची गई इस रोचक रचना को आज फिर से पढकर अच्छा लगा सुबोध जी।आखिर अन्तिम और शाश्वत प्रेयसी वही है इंसान की। फिल्मी गीत में भी 'अंजान 'जी ने कहा है कि----
ReplyDeleteजिन्दगी तो बेवफ़ा है एक दिन ठुकराएगी
मौत महबूबा है अपने साथ लेकर जायेगी///
बढिया लिखा आपने।यदि सभी मृत्यु को इसी प्रकार सकारात्मक भाव से देखें तो जीवन में कई तरह की भ्रान्तियों का निवारण हो सकता है।
जी ! नमन संग आभार आपका .. तथाकथित "भ्रांति रस" को अपनी बहुमूल्य स्वीकृति देने के लिए शुक्रिया रेणु जी .. सच में, मौत को ज़श्न को तरह ही मनाने का मन है .. आगे क़ुदरत की मर्ज़ी .. बस यूँ ही ...
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteअद्भुत भ्रांति रस!!!
सच में बिल्कुल भी नहीं लगा कि ये चिरप्रेयसी मृत्यु की तारीफों के पुलिंदे हैं....आश्चर्यजनक भ्रांति रस
लाजवाब।
जी ! नमन संग आभार आपका .. तथाकथित भ्रान्ति रस तक आने लिए ...
Delete