Friday, February 26, 2021

कुरकुरी तीसीऔड़ियाँ / रुमानियत की नमी ...

जानाँ ! ...

तीसी मेरी चाहत की 

और दाल तुम्हारी हामी की

मिलजुल कर संग-संग ,

समय के सिल-बट्टे पर 

दरदरे पीसे हुए , रंगे एक रंग ,

सपनों की परतों पर पसरे 

घाम में हालात के 

हौले-हौले खोकर

रुमानियत की नमी 

हम दोनों की ;

बनी जो सूखी हुईं ..

मिलन के हमारे 

छोटे-छोटे लम्हों-सी

छोटी-छोटी .. कुरकुरी ..

तीसीऔड़ियाँ।


हैं सहेजे हुए 

धरोहर-सी आज भी

यादों के कनस्तर में ,

जो फ़ुर्सत में ..

जब कभी भी 

सोचों की आँच पर 

नयनों से विरह वाले

रिसते तेल में 

लगा कर डुबकी

सीझते हैं मानो 

तिलमिलाते हुए।

जीभ पर तभी ज़ेहन के 

है हो जाता 

अक़्सर आबाद

एक करारा .. कुरकुरा .. 

सोंधा-सा स्वाद .. बस यूँ ही ...



18 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शनिवार 27 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-02-2021) को    "महक रहा खिलता उपवन"  (चर्चा अंक-3991)     पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  4. बहुत सुंदर रचना।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  6. सुन्दर भावों का सृजन ।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  7. वाह , ग़ज़ब के रूपक से सजी रचना । पढ़ कर आनंद आया ।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  8. बेहतरीन तरीके से आपने जीवन की व्याख्या की है आदरणीय सुबोध जी। मंत्रमुग्ध हूँ। ।।।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ... :)

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  9. अनूठे बिंब और चमत्कृत भावों से सुसज्जित बेहद सोंधी रचना।
    तीसी और दाल से बनी रचना सुस्वादु है सच में।

    सादर।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ... :)

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