Friday, January 29, 2021

चँदोवा ...

किसी का रूढ़िवादी होना भी कई बार हमें गुदगुदा जाता है । ठीक उस 'डिटर्जेंट पाउडर' विशेष के विज्ञापन - " कुछ दाग़-धब्बे अच्छे होते हैं " - की तरह .. शायद ...

यूँ तो ये बात बेकार की बतकही लग रही होगी , पर फ़र्ज़ कीजिये अगर .. हमारी पत्नी या प्रेमिका या फिर हमारा पति या प्रेमी रूढ़िवादी हो और .. हम कभी अपने रूमानी मनोवेग में अपनी तर्जनी भर की तूलिका से प्यार भरी एक मासूम-सी थपकी का रूमानी रंग उनके एक गाल के कैनवास पर आहिस्ता से स्पर्श भर करा दें ; मतलब - उनके एक तरफ के गाल, दायाँ या बायाँ में से अपनी सुविधानुसार कोई भी एक , को छू भर दें और चिढ़ाते हुए दौड़ कर उन से दूर भाग जायें ; फिर ... वो ठुनक-ठुनक कर हमारे पीछे-पीछे पीछा करते हुए बचपन के "छुआ-छुईं" वाले खेल की तरह तब तक दौड़ लगाती/लगाते रहें , जब तक कि हमारी हथेली को ज़बरन पकड़ कर हमारी उँगलियों भर से ही सही अपने दूसरे तरफ वाले गाल को स्पर्श न करवा लें ; ताकि वे अपनी रूढ़िवादी तथाकथित मान्यता/सोच के कारण दुबली/दुबले न हो जाएं कहीं .. तो .. इस तरह इस प्रकार की रूमानी हँसी-ठिठोली में हमारा मन भला गुदगुदायेगा या नहीं ? अगर " नहीं " तब तो उपर्युक्त बतकही आपके लिए वैसे भी बेमानी है और अगर " हाँ " तो बतकही आगे बढ़ाते हैं ...

अब अगर आप इस तरह की रूढ़िवादी मान्यता पर यक़ीन नहीं करते/करती हैं , तब तो कोई बात ही नहीं, पर .. अगर करते/करती हैं तो .. आपके इस यक़ीन के फलस्वरूप यक़ीनन आपके पति/प्रेमी/पत्नी/प्रेमिका को ऐसे किसी अवसर पर कभी-न-कभी ऐसी गुदगुदाहट की अनुभूति अवश्य हुई होगी या फिर ऐसी गुदगुदाहट का मौका बचपन में भी भाई-बहन की आपसी चुहलबाजियों के दरम्यान आया हुआ हो सकता है .. शायद ...

बहुत हो गई बेकार की बतकही .. अब कुछ वर्त्तमान के यथार्थ की बात कर लेते हैं। ये तो सर्वविदित है कि इन दिनों उत्तर भारत ठंड , शीतलहर , बर्फ़ और कोहरे के श्रृंगार से सुसज्जित है। यहाँ गंगा के दक्षिणी तट पर बसे बिहार की राजधानी पटना में बर्फ़बारी के आनन्द का सौभाग्य तो नहीं है, पर .. बर्फ़ीली शीतलहर और कोहरे की परतें जरूर चढ़ी हुई है। यही कोहरे आज की निम्नांकित चंद पंक्तियों वाले इस " चँदोवा ... " को मन के रास्ते वेब-पृष्ठ पर पसरने की वज़ह भी बने हैं .. शायद ... जिस वज़ह को भी आप सभी से साझा करना मुनासिब लगा मुझे .. बस यूँ ही ...

चँदोवा ...

पौष की

बर्फ़ीली

चाँदनी 

रात में

आलिंगनबद्ध 

होने के लिए

जानाँ ...


भला 

आज 

क्यों 

किसी

झुरमुट की 

ओट को 

तलाशना ,


है जब 

सब 

ओर

यहाँ

क़ुदरती

कोहरे का 

चँदोवा तना ...


तो फिर ..

देर किस

बात की

भला , 

बस .. आओ ना ,

आ भी जाओ ना ..

जानाँ ...






8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज शुक्रवार 29 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी ! आभार आपका .. संग नमन आपको ...

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    1. जी ! आपको नमन संग आभार आपका ...

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  3. बहुत सुंदर। आगे की कुछ पंक्तियाँ में जोड़ देता हूँ:
    तूलिका-सी
    तर्जनी मेरी
    गात तेरी
    ताप की
    बरसात करें
    अभिसार का
    अनुपात भरें!

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  4. जी ! आभार आपका अपनी "कुछ" पंक्तियों को जोड़ कर मन में और भी "कुछ-कुछ" उत्पन्न कर रूमानी मनोवेग को और भी ज्यादा बढ़ाने के लिए :) .. साथ ही बहुत दिनों बाद लॉकडाउन और खरमास के बाद वाला वैक्सीनयुक्त नमन :) ...

    ( वैसे सच कहूँ तो आपकी इन कुछ पंक्तियों के कुछ शब्दों के लिए Google बाबा से सम्पर्क साधना पड़ा है ...:))

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