Tuesday, July 21, 2020

नज़र रानी की मुंतज़िर ...

आज हमारे सत्तर के दशक वाले खेलों के आयाम बदल गए हैं या यूँ कहें कि आयामों के खेल बदल गए हैं .. जो भी हो .. अनुभवी कहते हैं कि प्रकृति परिवर्त्तनशील है .. समय भी .. पल-पल, हर पल .. शायद .. तभी तो हम बच्चे से युवा और युवा से न जाने कब वयस्क हो कर  प्रौढ़ भी हो गए और इसीलिए तो हमारे बचपन के सब खेलों के भी मायने बदल गए .. "पर खेल तो हैं वही, बस आयाम है नयी" .. खैर ! अब चलते हैं आज की ताज़ीतरीन (ताज़ातरीन के तर्ज़ पर) परन्तु .. कई दिनों से दिमाग़ की हंड़िया में पक रही ये तीनों रचनाएँ .. बस आपके लिए .. बस यूँ ही ...

नज़र  रानी की  मुंतज़िर 
कभी "व्यापार" के नकली रुपयों भर से भी 
तिजोरी हमारी बस यूँ अमीर हुआ करती थी।

"लूडो" के उन काग़ज़ी बेज़मीं घरों में ही सही
बिना  छत भी हमारी जागीर हुआ करती थी।

थी "कैरम बोर्ड"  की वो महज़ लाल गोटी ही
पर नज़र  रानी की  मुंतज़िर हुआ करती  थी।

कभी राजा,  मंत्री, सिपाही, तो  चोर भी कभी  
हाथ की पुड़िया बहुत अधीर हुआ करती थी।

पतंगों  संग अरमानें भी तो ऊँचाइयाँ थीं छूती
तब कहाँ हक़ीक़त की ज़ंजीर हुआ करती थी।

रेत पर .. रेत के बने घरौंदों पर अपने नामों की  
उँगलियों से  खुदी हुई  तहरीर हुआ करती थी।

न जाति का लफ़ड़ा,  न आरक्षण से रगड़ा कोई
गुड्डे-गुड़ियों की अच्छी  तक़दीर हुआ करती थी।

तब न कोई "एलओसी",न ही थी"एलएसी" कोई
"छू कित्-कित्" की  बस लकीर हुआ करती थी।

आँख-मिचौली, डेंगा-पानी या फिर छुआ-छुईं भी
तब छूने से कोई बात नहीं गंभीर हुआ करती थी।

"स्टेचू" का वो  धप्पा,  चाईं-चूड़ी, या  गाना-गोटी
पर मिटाने की नहीं कोई  तदबीर हुआ करती थी।

चोर के बाद राजा
जब भी मिलते थे बचपन में तब के चार यार,
मैं पप्पू, बबलू, गुड्डू और रामावतार,
राजा, मंत्री, सिपाही, चोर बनाता खेल
पुड़िया वाला, खेला करते थे हम कई बार,
कभी मैं बनता राजा तो कभी चोर,
कभी मंत्री तो कभी सिपाही कई बार
और ऐसा ही कभी होता बबलू के साथ
तो कभी गुड्डू तो कभी रामावतार के साथ कई बार
और इस क्रम में .. कभी-कभी तो यार! ...
ख़ुश होता जो भी बनता चोर के बाद राजा या मंत्री जिस बार,
कुछ-कुछ जैसे आज के लोकतंत्र में कई मंत्रियों की क़तार,
पर उदास होता था जो बनता था चोर- सिपाही, मंत्री या राजा के बाद 
पर ठीक इसके विपरीत है आज कई ऐसे नौकरशाहों की भरमार,
जो है इठलाता कर के भी ग़बन और घोटाले बेशुमार।

लाल रानी
कैरम बोर्ड की 
रानी लाल गोटी की जीत,
बिना किसी पीली या 
काली गोटी के जीत के
हर बार होती है बेमानी।

लाल गोटी .. रानी
पर साथ में है जरुरी
एक गोटी पीली या काली
वर्ना रानी बेमानी .. मानो ...
नर और नारी की कहानी।
           ★◆★



6 comments:

  1. क्या बात है। लाजवाब।

    हमें भी खिला देते भुट्टा :)

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    1. जी! आभार आपका ...

      वैसे इसको कोई भुट्टा खिलाया नहीं है .. ये तो भुट्टा बेचने वाली का भुट्टा झपट कर भाग गया है :) और मज़े से भकोस रहा है .. पर इसकी "नज़र रानी की मुन्तज़िर" है .. शायद ... :) :)

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-07-2020) को     "सावन का उपहार"   (चर्चा अंक-3770)     पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  3. बहुत बढ़िया

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