बहुत पहले बच्चों और युवाओं को लक्ष्य कर के किसी मंचीय कार्यक्रम में एक संदेशात्मक व्याख्यान के लिए इस बकबक का संक्षिप्त रुप लिखा था। बाद में चित्र आधारित रचना की किसी प्रतियोगिता के लिए इसमें थोड़ा परिवर्तन कर के वहाँ प्रस्तुत किया था। आज पुनः इसमें कुछ समसामयिक बातों को जोड़कर यहाँ साझा कर रहा हूँ। वैसे तो आप सभी को ध्यान में रख कर इसको लिखा ही नहीं है। आप सभी तो आईक्यूधारी और बुद्धिजीवी लोग हैं, बच्चों और युवाओं के लिए इस कही हुई बातों के लिए मज़ाक मत बनाइएगा मेरा। और हाँ ... विधा की अल्प जानकारी के कारण ही इसको बकबक कह रहा हूँ, मालूम नहीं इसको कहानी कहनी चाहिए या आलेख। खैर ! .. जो भी हो .. जैसा भी हो .. बस .. आपके समक्ष है .. बस यूँ ही ...
गुरुत्वाकर्षण बनाम प्यार ...
लगभग सारे भारतवासी मुझे बुलाते हैं - "भारत माता"। हाँ, मैं हूँ ही तो .. आप सभी की भारत माँ .. है न ? अगर मैं आप सभी की माँ हूँ तो मेरी भी तो कोई न कोई तो माँ होंगी ही ना ? क्योंकि बिना माँ की कोई भी सजीव सृष्टि नहीं होती .. है न ?
हाँ .. तो .. मैं मेरी माँ की बात कर रही हूँ। मेरी माँ हैं .. पृथ्वी माँ। पृथ्वी माँ की कोख़ से जन्मी .. माँ का अंश .. माँ का अंग .. माँ की लाडली बेटी .. आप सभी की माँ .. मैं .. भारत माँ।
मेरी माँ .. पृथ्वी .. फिर उनकी भी माँ .. उनकी भी जननी .. एक अनवरत सिलसिला .. आप सभी वंशबेल की तरह .. मेरा परिवार है । ये पूरा ब्रह्माण्ड। ये सारे ग्रह, उपग्रह, तारे, सूरज, सभी मिलकर या मिलजुल कर एक परिवार ही तो हैं। है न ? हमारा आपसी प्यार ही है जो हमारे साथ-साथ आप सभी सुरक्षित हैं। ह-मा-रा आ-प-सी प्या-र .. अरे हाँ तो ! ... हमारा आपसी प्यार .. जिसे आप विज्ञान की भाषा में गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। आप सोचिए ना ज़रा .. अगर एक पल के लिए भी हमारा आपसी प्यार यानि गुरुत्वाकर्षण जरा-सा भी डगमगा जाए तो आपके जीवन में भूचाल आ जाए .. है कि नहीं ?
कितना विराट है ये हम सभी का अपना ब्रह्माण्ड ! .. आप लोगों को बचपन के दिनों में सामान्य विज्ञान की किताबों और शिक्षकों ने केवल नौ ग्रहों के बारे में बतलाया था। .. है न ? .. पर उस दिन से आज तक आए दिन समाचार पत्रों, पत्रिकाओं या अन्य संचार माध्यमों से आप सभी को ज्ञात तो होता ही रहता है कि पूरे विश्व के विज्ञान और वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड में कई-कई नए-नए ग्रहों और उपग्रहों की ख़ोज करते रहते है या पहले से ज्ञात ग्रहों-उपग्रहों के नए-नए आयामों से पूरी दुनिया को अवगत कराते रहते हैं। ये सभी हमारी माँ यानि पृथ्वी के ही नाते-रिश्तेदार ही तो हैं जो आपसी प्यार से यानि आपके विज्ञान की भाषा में गुरुत्वाकर्षण से एक-दूसरे से अनवरत जुड़े हुए हैं। आशा है कि शायद .. भविष्य में भी .. ये सिलसिला जारी रहेगा .. थमेगा नहीं .. जारी है और .. जारी रहेगा भी। हमारे रिश्तेदारों को खोजने का भी और हमारे आपसी गुरुत्वाकर्षणका भी .. शायद ...।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की तुलना में मैं .. आपकी भारत माँ और मेरी माँ .. पृथ्वी एक अदद अदना-सी कितनी छोटी हूँ भला ! ... पृथ्वी की तुलना में भारत, भारत की तुलना में बिहार .. जो ठीक नक़्शे में भारत माँ के हृदयस्थली के पास दिखता है एक राज्य मात्र और उस राज्य बिहार में एक जिला और राज्य की राजधानी भी - पटना। आगे .. पटना का एक मुहल्ला, मुहल्ला में आपका घर .. ओह ! क्षमा करें .. घर नहीं .. आपके एपार्टमेंट में आपका एक फ्लैट, एक, दो या तीन बीएचके वाला, उसमें आपका परिवार और .. उसके एक हिस्से में .. अपने हिस्से की हवा से अपनी साँस में ऑक्सीजन गैस को अपने नथुनों से अपने फेफड़े तक पहुँचाते हुए आप .. बाप रे ! ... मतलब पूरे ब्रह्माण्ड की तुलना में आप शायद रेत के एक कण तुल्य भी अस्तित्व नहीं रखते .. शायद ...। अगर इस तुलनात्मक अपने अस्तित्व पर अब भी गुमान हो रहा हो और इस कोरोनकाल में यदि आपके शहर में लॉकडाउन की घोषणा ना की गयी हो तो अपने नाक-मुँह पर यथोचित मास्क लगा कर और अपनी राज्य या केंद्र सरकार के अन्य निर्देशों का पालन करते हुए एक बारगी अपने शहर या गाँव के श्मशान या कब्रिस्तान तक एक क्षण के लिए ही सही टहल कर वापस आ जाइएगा।
फ़िलहाल आप सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इसी पृथ्वी की पैदाइश हैं। फिर भी स्वयं को .. देश को .. कई सारी सीमा रेखाओं में, कहीं एलओसी तो कहीं एलएसी के नाम पर क़ैद कर रखा है। एक-दूसरे के दुश्मन बने बैठे हैं। विज्ञान और उसके आविष्कारों का दुरूपयोग कर के उसे ही बदनाम कर रहे हैं। सीमा के भीतर अपने देश के भीतर भी जाति-धर्म के नाम पर एक-दूसरे के दुश्मन बने बैठे हैं। अब देखिए ना जरा .. सब मेरी ही .. अपनी भारत माँ .. एक ही माँ की सन्तान हैं .. पर इंसान, इंसान का दुश्मन बना बैठा है। सभी .. हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैनी .. और ना जाने कितने धर्मों, जातियों, उपजातियों, सम्प्रदायों में बँटे हुए हैं। कभी सोचा है फ़ुर्सत के लम्हों में .. किया है कभी .. मनन .. चिंतन .. कि आप इंसानो के लिए मेरे परिवार से मिले सूरज, चाँद एक ही हैं और इस के अलावा पानी, हवा, बादल, मौसम सब आपको मुक्त व मुफ़्त में मिले हैं।
पृथ्वी को अगर आप सभी हवा का एक दरिया मान लें .. वैसे मानना क्या है भला ! .. ये तो है भी .. पढ़ा ही होगा आप सभी ने बचपन में अपने भूगोल विषय के अन्तर्गत कि पृथ्वी के चारों ओर ऊपर की ओर कुछ किलोमीटर तक हवा की एक परत लिपटी हुई है .. पढ़ा है ना ? .. या फिर केवल अंक लाने के लिए रट्टा मारा था ? नहीं ना ? .. तो अगर हवा की दरिया है तो .. सोचिए ना जरा .. तथाकथित हिंदुओं के नथुनों से निकली साँस बाद में किसी मुसलमान या किसी ईसाई के नथुनों में जाती है। ठीक इसका विलोम भी होता है। तो फिर .. बाँटिए ना हवा को, बाँटिए ना धूप को, चँदा की चाँदनी को, बादल को .. कि ये हिन्दू की हवा है, ये मुसलमान की हवा है .. ये भारत का बादल है, ये चीन का बादल है .. ये सिक्ख का धूप है, ये बौद्ध की चाँदनी है। है सामर्थ्य ? .. बोलिए ! ...
वैसे तो हमारे मनुवादी पुरखों ने ही नहीं, बल्कि आज के वर्तमान कई समाज में भी जाति-धर्म की आड़ में खाना-पानी की छुआछूत का प्रचलन है। वैसे इन दिनों वर्त्तमान के कोरोनाकाल में छुआछूत का मामला उन मामलों से इतर है।
अब .. जब प्रकृति ने भेदभाव नहीं की है अपनी दी हुई चीज़ों में या हम सभी सपरिवार बंध कर रहते हैं ब्रह्माण्ड में .. गुरुत्वाकर्षण के दायरे में बंध कर तो .. फिर आप सभी मानवों ने, बुद्धिजीवियों ने क्यों कर रखा है भला भेदभाव ? क्यों बने हुए हैं एक-दूसरे के जानी दुश्मन ? बोलिए ना जरा .. इस पृथ्वी के सबसे ज्यादा आईक्यूधारी प्राणियों ! ... बोलिए ...।
आप सभी तो मेरी और मेरी माँ की धमनियों में बहने वाली नदियों में से से एक नदी - गंगा नदी को भी माँ कह कर ही बुलाते हैं। है ना ? गंगा ही क्यों .. गंगा-यमुना जैसी अनेकों नदियाँ, महानदियाँ हैं जिसे आप पूजते भी हैं। पर आज देखी है आपने .. अपनी उन माँओं की दुर्दशा ? किसने की है ये दुर्दशा ? किसने फैलाया है ये प्रदूषण ? आप इंसानों ने ही ना ? आप इंसान इस तरह की दोहरी ज़िन्दगी क्यों जीते हैं भला ?
आप आपस में लड़ते-मरते हैं, पर हैं तो सभी मेरी ही संतान। मैं तो भेदभाव नहीं करती आपके साथ या हम सभी ब्रह्माण्ड में .. आपस में भी। मेरा मन बहुत कुंहकता है, कपसता है .. कभी तो भोंकार पार कर रोने का मन करता है, पर अगर मैं रोने लगी तो मेरी ओर देखेगा कौन ? कौन चुप कराएगा भला ? आयँ ! .. इसीलिए गंगा की तरह ही शर्मिंदगी के साथ सब कुछ झेल रही हूँ। पर आप सभी की माँ होकर भी आप सभी से .. अपनी संतानों से हाथ जोड़ कर प्रार्थना करती हूँ कि एक बार तो सोचिए ना .. अगर यही हाल रहा तो आप अपनी भावी पीढ़ी के लिए क्या छोड़ कर जायेंगे ? .. दिन पर दिन बदतर होती पृथ्वी .. दिन पर दिन बदतर होती ज़िन्दगी ? बोलिए ?
आज परिवर्तन की आवश्यकता है, वैसे तो हमेशा से ही रही है। एक क्रांति की आवश्यकता है, वैसे तो हमेशा से ही रही है। परन्तु आज शायद .. एक सकारात्मक परिवर्तन, एक सकारात्मक क्रांति की आवश्यकता है। सोच को बदलना है। सोच की दशा और दिशा बदलनी है। दोहरी ज़िन्दगी नहीं, बल्कि दोगली ज़िन्दगी के खोल से .. मुखौटे से बाहर निकलनी है। तथाकथित धर्मों-मज़हबों के खोल से .. या यूँ कहें कि उस के खाल से बाहर निकल के सोचने की ज़रूरत है।
दरअसल बलि और क़ुर्बानी के नाम पर हिंसा परोसने वाले धर्मों-मज़हबों से किसका भला होगा भला ? सोचिए ना जरा ! ...
आप भी हमारे आपसी गुरुत्वाकर्षण वाले बंधन के तरह आपस में प्यार से बंध कर रहिए। अगर आप सभी प्यार से मिलजुल कर रहना सीख लेंगें तो आप के धर्मों और मज़हबों वाले तथाकथित स्वर्ग, ज़न्नत और बहिश्त, जिनकी कपोल कल्पना की गई है धर्मग्रंथों में, सब आपकी माँ या माता यानि इसी भारत में .. मुझ में .. मेरी माँ यानि पृथ्वी पर बस जायेगा।
आप मुझे माँ कहते हैं तो .. अपनी माँ की बातें .. मेरी बातें .. मान लीजिए। अपने लिए नहीं भी मानते हों तो कम-से-कम अपनी भावी पीढ़ियों के लिए ही सही हिन्दू-मुसलमान की जगह इंसान बन जाइए ... प्लीज़ ... बनेंगे ना ? ... आयँ ! ... बस यूँ ही ...
गुरुत्वाकर्षण बनाम प्यार ...
लगभग सारे भारतवासी मुझे बुलाते हैं - "भारत माता"। हाँ, मैं हूँ ही तो .. आप सभी की भारत माँ .. है न ? अगर मैं आप सभी की माँ हूँ तो मेरी भी तो कोई न कोई तो माँ होंगी ही ना ? क्योंकि बिना माँ की कोई भी सजीव सृष्टि नहीं होती .. है न ?
हाँ .. तो .. मैं मेरी माँ की बात कर रही हूँ। मेरी माँ हैं .. पृथ्वी माँ। पृथ्वी माँ की कोख़ से जन्मी .. माँ का अंश .. माँ का अंग .. माँ की लाडली बेटी .. आप सभी की माँ .. मैं .. भारत माँ।
मेरी माँ .. पृथ्वी .. फिर उनकी भी माँ .. उनकी भी जननी .. एक अनवरत सिलसिला .. आप सभी वंशबेल की तरह .. मेरा परिवार है । ये पूरा ब्रह्माण्ड। ये सारे ग्रह, उपग्रह, तारे, सूरज, सभी मिलकर या मिलजुल कर एक परिवार ही तो हैं। है न ? हमारा आपसी प्यार ही है जो हमारे साथ-साथ आप सभी सुरक्षित हैं। ह-मा-रा आ-प-सी प्या-र .. अरे हाँ तो ! ... हमारा आपसी प्यार .. जिसे आप विज्ञान की भाषा में गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। आप सोचिए ना ज़रा .. अगर एक पल के लिए भी हमारा आपसी प्यार यानि गुरुत्वाकर्षण जरा-सा भी डगमगा जाए तो आपके जीवन में भूचाल आ जाए .. है कि नहीं ?
कितना विराट है ये हम सभी का अपना ब्रह्माण्ड ! .. आप लोगों को बचपन के दिनों में सामान्य विज्ञान की किताबों और शिक्षकों ने केवल नौ ग्रहों के बारे में बतलाया था। .. है न ? .. पर उस दिन से आज तक आए दिन समाचार पत्रों, पत्रिकाओं या अन्य संचार माध्यमों से आप सभी को ज्ञात तो होता ही रहता है कि पूरे विश्व के विज्ञान और वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड में कई-कई नए-नए ग्रहों और उपग्रहों की ख़ोज करते रहते है या पहले से ज्ञात ग्रहों-उपग्रहों के नए-नए आयामों से पूरी दुनिया को अवगत कराते रहते हैं। ये सभी हमारी माँ यानि पृथ्वी के ही नाते-रिश्तेदार ही तो हैं जो आपसी प्यार से यानि आपके विज्ञान की भाषा में गुरुत्वाकर्षण से एक-दूसरे से अनवरत जुड़े हुए हैं। आशा है कि शायद .. भविष्य में भी .. ये सिलसिला जारी रहेगा .. थमेगा नहीं .. जारी है और .. जारी रहेगा भी। हमारे रिश्तेदारों को खोजने का भी और हमारे आपसी गुरुत्वाकर्षणका भी .. शायद ...।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की तुलना में मैं .. आपकी भारत माँ और मेरी माँ .. पृथ्वी एक अदद अदना-सी कितनी छोटी हूँ भला ! ... पृथ्वी की तुलना में भारत, भारत की तुलना में बिहार .. जो ठीक नक़्शे में भारत माँ के हृदयस्थली के पास दिखता है एक राज्य मात्र और उस राज्य बिहार में एक जिला और राज्य की राजधानी भी - पटना। आगे .. पटना का एक मुहल्ला, मुहल्ला में आपका घर .. ओह ! क्षमा करें .. घर नहीं .. आपके एपार्टमेंट में आपका एक फ्लैट, एक, दो या तीन बीएचके वाला, उसमें आपका परिवार और .. उसके एक हिस्से में .. अपने हिस्से की हवा से अपनी साँस में ऑक्सीजन गैस को अपने नथुनों से अपने फेफड़े तक पहुँचाते हुए आप .. बाप रे ! ... मतलब पूरे ब्रह्माण्ड की तुलना में आप शायद रेत के एक कण तुल्य भी अस्तित्व नहीं रखते .. शायद ...। अगर इस तुलनात्मक अपने अस्तित्व पर अब भी गुमान हो रहा हो और इस कोरोनकाल में यदि आपके शहर में लॉकडाउन की घोषणा ना की गयी हो तो अपने नाक-मुँह पर यथोचित मास्क लगा कर और अपनी राज्य या केंद्र सरकार के अन्य निर्देशों का पालन करते हुए एक बारगी अपने शहर या गाँव के श्मशान या कब्रिस्तान तक एक क्षण के लिए ही सही टहल कर वापस आ जाइएगा।
फ़िलहाल आप सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इसी पृथ्वी की पैदाइश हैं। फिर भी स्वयं को .. देश को .. कई सारी सीमा रेखाओं में, कहीं एलओसी तो कहीं एलएसी के नाम पर क़ैद कर रखा है। एक-दूसरे के दुश्मन बने बैठे हैं। विज्ञान और उसके आविष्कारों का दुरूपयोग कर के उसे ही बदनाम कर रहे हैं। सीमा के भीतर अपने देश के भीतर भी जाति-धर्म के नाम पर एक-दूसरे के दुश्मन बने बैठे हैं। अब देखिए ना जरा .. सब मेरी ही .. अपनी भारत माँ .. एक ही माँ की सन्तान हैं .. पर इंसान, इंसान का दुश्मन बना बैठा है। सभी .. हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैनी .. और ना जाने कितने धर्मों, जातियों, उपजातियों, सम्प्रदायों में बँटे हुए हैं। कभी सोचा है फ़ुर्सत के लम्हों में .. किया है कभी .. मनन .. चिंतन .. कि आप इंसानो के लिए मेरे परिवार से मिले सूरज, चाँद एक ही हैं और इस के अलावा पानी, हवा, बादल, मौसम सब आपको मुक्त व मुफ़्त में मिले हैं।
पृथ्वी को अगर आप सभी हवा का एक दरिया मान लें .. वैसे मानना क्या है भला ! .. ये तो है भी .. पढ़ा ही होगा आप सभी ने बचपन में अपने भूगोल विषय के अन्तर्गत कि पृथ्वी के चारों ओर ऊपर की ओर कुछ किलोमीटर तक हवा की एक परत लिपटी हुई है .. पढ़ा है ना ? .. या फिर केवल अंक लाने के लिए रट्टा मारा था ? नहीं ना ? .. तो अगर हवा की दरिया है तो .. सोचिए ना जरा .. तथाकथित हिंदुओं के नथुनों से निकली साँस बाद में किसी मुसलमान या किसी ईसाई के नथुनों में जाती है। ठीक इसका विलोम भी होता है। तो फिर .. बाँटिए ना हवा को, बाँटिए ना धूप को, चँदा की चाँदनी को, बादल को .. कि ये हिन्दू की हवा है, ये मुसलमान की हवा है .. ये भारत का बादल है, ये चीन का बादल है .. ये सिक्ख का धूप है, ये बौद्ध की चाँदनी है। है सामर्थ्य ? .. बोलिए ! ...
वैसे तो हमारे मनुवादी पुरखों ने ही नहीं, बल्कि आज के वर्तमान कई समाज में भी जाति-धर्म की आड़ में खाना-पानी की छुआछूत का प्रचलन है। वैसे इन दिनों वर्त्तमान के कोरोनाकाल में छुआछूत का मामला उन मामलों से इतर है।
अब .. जब प्रकृति ने भेदभाव नहीं की है अपनी दी हुई चीज़ों में या हम सभी सपरिवार बंध कर रहते हैं ब्रह्माण्ड में .. गुरुत्वाकर्षण के दायरे में बंध कर तो .. फिर आप सभी मानवों ने, बुद्धिजीवियों ने क्यों कर रखा है भला भेदभाव ? क्यों बने हुए हैं एक-दूसरे के जानी दुश्मन ? बोलिए ना जरा .. इस पृथ्वी के सबसे ज्यादा आईक्यूधारी प्राणियों ! ... बोलिए ...।
आप सभी तो मेरी और मेरी माँ की धमनियों में बहने वाली नदियों में से से एक नदी - गंगा नदी को भी माँ कह कर ही बुलाते हैं। है ना ? गंगा ही क्यों .. गंगा-यमुना जैसी अनेकों नदियाँ, महानदियाँ हैं जिसे आप पूजते भी हैं। पर आज देखी है आपने .. अपनी उन माँओं की दुर्दशा ? किसने की है ये दुर्दशा ? किसने फैलाया है ये प्रदूषण ? आप इंसानों ने ही ना ? आप इंसान इस तरह की दोहरी ज़िन्दगी क्यों जीते हैं भला ?
आप आपस में लड़ते-मरते हैं, पर हैं तो सभी मेरी ही संतान। मैं तो भेदभाव नहीं करती आपके साथ या हम सभी ब्रह्माण्ड में .. आपस में भी। मेरा मन बहुत कुंहकता है, कपसता है .. कभी तो भोंकार पार कर रोने का मन करता है, पर अगर मैं रोने लगी तो मेरी ओर देखेगा कौन ? कौन चुप कराएगा भला ? आयँ ! .. इसीलिए गंगा की तरह ही शर्मिंदगी के साथ सब कुछ झेल रही हूँ। पर आप सभी की माँ होकर भी आप सभी से .. अपनी संतानों से हाथ जोड़ कर प्रार्थना करती हूँ कि एक बार तो सोचिए ना .. अगर यही हाल रहा तो आप अपनी भावी पीढ़ी के लिए क्या छोड़ कर जायेंगे ? .. दिन पर दिन बदतर होती पृथ्वी .. दिन पर दिन बदतर होती ज़िन्दगी ? बोलिए ?
आज परिवर्तन की आवश्यकता है, वैसे तो हमेशा से ही रही है। एक क्रांति की आवश्यकता है, वैसे तो हमेशा से ही रही है। परन्तु आज शायद .. एक सकारात्मक परिवर्तन, एक सकारात्मक क्रांति की आवश्यकता है। सोच को बदलना है। सोच की दशा और दिशा बदलनी है। दोहरी ज़िन्दगी नहीं, बल्कि दोगली ज़िन्दगी के खोल से .. मुखौटे से बाहर निकलनी है। तथाकथित धर्मों-मज़हबों के खोल से .. या यूँ कहें कि उस के खाल से बाहर निकल के सोचने की ज़रूरत है।
दरअसल बलि और क़ुर्बानी के नाम पर हिंसा परोसने वाले धर्मों-मज़हबों से किसका भला होगा भला ? सोचिए ना जरा ! ...
आप भी हमारे आपसी गुरुत्वाकर्षण वाले बंधन के तरह आपस में प्यार से बंध कर रहिए। अगर आप सभी प्यार से मिलजुल कर रहना सीख लेंगें तो आप के धर्मों और मज़हबों वाले तथाकथित स्वर्ग, ज़न्नत और बहिश्त, जिनकी कपोल कल्पना की गई है धर्मग्रंथों में, सब आपकी माँ या माता यानि इसी भारत में .. मुझ में .. मेरी माँ यानि पृथ्वी पर बस जायेगा।
आप मुझे माँ कहते हैं तो .. अपनी माँ की बातें .. मेरी बातें .. मान लीजिए। अपने लिए नहीं भी मानते हों तो कम-से-कम अपनी भावी पीढ़ियों के लिए ही सही हिन्दू-मुसलमान की जगह इंसान बन जाइए ... प्लीज़ ... बनेंगे ना ? ... आयँ ! ... बस यूँ ही ...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 20 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी! आभार आपका ...
Deleteइंसान बन जायेंगे तो वोट वोट कैसे खेल पायेंगे ? चलो कोई नहीं कोशिश करते हैं। क्या पता अगले जनम मोहे इन्सान कीजो सुन लेंं हनुमान जी कलयुग के नेता।
ReplyDeleteवोट-वोट के लिए तो "Rक्षण-Rक्षण" भी तो करना पड़ता है .. हमको भी तथाकथित मोक्ष नहीं चाहिए .. फिर जन्म लेना .. हनुमान जी नेता ही नहीं "भूमि माफ़िया" भी हैं, जहाँ की जमीन को क़ब्ज़ा करनी है .. बस, वहाँ एक लंगोटाधारी इनकी मूर्त्ति को खड़ी कर देनी है ...
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