◆(1)◆
लहानिया भीखू
ज्यों करती है प्रतीक्षा उगते सूरज की
छठ के भोर में अर्ध्य देने को भिनसारे,
हाथ जोड़े कभी,तो कभी अचरा पसारे,
छठव्रती कोई मुँह-अँधेरे, सुबह-सकारे।
प्रतीक्षा बस कुछ पलों की आस्था भरी,
फिर तो उग ही आते हैं सूरज मुस्कुराते।
ज्यों करती है प्रतीक्षा उगते सूरज की
छठ के भोर में अर्ध्य देने को भिनसारे,
हाथ जोड़े कभी,तो कभी अचरा पसारे,
छठव्रती कोई मुँह-अँधेरे, सुबह-सकारे।
प्रतीक्षा बस कुछ पलों की आस्था भरी,
फिर तो उग ही आते हैं सूरज मुस्कुराते।
करती है प्रतीक्षा ये एक सवाल नायाब,
आख़िर होंगे कब हम सभी क़ामयाब ?
यूँ तो गाते आए हैं "हम होंगे कामयाब",
बचपन से ही मिलजुल कर हम सारे।
शेष हो कब प्रतीक्षा उस छठव्रती-सी,
जो गाएँ "हम हो गए कामयाब" सारे।
आख़िर होंगे कब हम सभी क़ामयाब ?
यूँ तो गाते आए हैं "हम होंगे कामयाब",
बचपन से ही मिलजुल कर हम सारे।
शेष हो कब प्रतीक्षा उस छठव्रती-सी,
जो गाएँ "हम हो गए कामयाब" सारे।
लहानिया भीखू* है आज भी अंदर और
बाहर नागी लहानिया* के बलात्कारी-हत्यारे।
टंगी है देखो "सत्यमेव जयते" की तख़्ती
बेजान-सी हर न्यायालय की दीवारों के सहारे,
कर रही प्रतीक्षा वर्षों से बस टुकुर-टुकुर,
शत्-प्रतिशत न्याय की राह मौन निहारे।
बाहर नागी लहानिया* के बलात्कारी-हत्यारे।
टंगी है देखो "सत्यमेव जयते" की तख़्ती
बेजान-सी हर न्यायालय की दीवारों के सहारे,
कर रही प्रतीक्षा वर्षों से बस टुकुर-टुकुर,
शत्-प्रतिशत न्याय की राह मौन निहारे।
देख मार-काट आज भी बेधड़क,
जाति-धर्म और मज़हब के नाम पर,
पूछती आत्मा - कब थकेंगे हत्यारे?
जमीन-इंसानों के कब थमेंगे बँटवारे?
प्रतीक्षा तो सीखी निर्भया की माँ से,
पर भला कब तक ? कोई तो हो, जो बतलाए !!! ...
जाति-धर्म और मज़हब के नाम पर,
पूछती आत्मा - कब थकेंगे हत्यारे?
जमीन-इंसानों के कब थमेंगे बँटवारे?
प्रतीक्षा तो सीखी निर्भया की माँ से,
पर भला कब तक ? कोई तो हो, जो बतलाए !!! ...
[ * = "लहानिया भीखू" (ओमपुरी) एक आदिवासी मजदूर "आक्रोश" (1980) फ़िल्म, जो सच्ची घटना पर आधारित है, का नायक है ; जिसे अन्याय बर्दाश्त नहीं होता और अन्याय पर उसका खून उबलता है।
परन्तु लहानिया को सबक सिखाने के लिए उस इलाके के फारेस्ट-कॉन्ट्रैक्टर, डॉक्टर, सभापति और उनका एक पुलिस दोस्त मिलकर उसकी पत्नी "नागी लहानिया" (स्मिता पाटिल) का बलात्कार कर उसकी हत्या कर देते हैं और इल्ज़ाम उसी के पति लहानिया भीखू पर डाल देते हैं।]
परन्तु लहानिया को सबक सिखाने के लिए उस इलाके के फारेस्ट-कॉन्ट्रैक्टर, डॉक्टर, सभापति और उनका एक पुलिस दोस्त मिलकर उसकी पत्नी "नागी लहानिया" (स्मिता पाटिल) का बलात्कार कर उसकी हत्या कर देते हैं और इल्ज़ाम उसी के पति लहानिया भीखू पर डाल देते हैं।]
★◆★
◆(2)◆
ताबूत आने की
न्याय मिलने की
प्रतीक्षा की घड़ी,
निर्भया की माँ की
आँखों में है .. अक़्सर हमने देखी।
न्याय मिलने की
प्रतीक्षा की घड़ी,
निर्भया की माँ की
आँखों में है .. अक़्सर हमने देखी।
किसी के लिये थोड़ी देर की बात
ReplyDeleteकिसी के लिये जिन्दगी भर की आस :(
जी ! आभार आपका .. सही कहे आप ...
Deleteकिसी के लिए चिता जलने तक
किसी के लिए साँसें चलने तक :(
वाह! सुंदर रचना।
ReplyDeleteजी! आभार आपका ...
Deleteअप्रतिम रचना।
ReplyDeleteजी! आभार आपका ...
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 22 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
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