सर्वविदित अनूप जलोटा जी के एक लोकप्रिय भजन का प्रसंगवश सुमिरन करते हुए हम आज की अपनी बतकही की शुरुआत कर रहे हैं .. बस यूँ ही ...
"तेरे मन में राम, तन में राम,
तेरे मन में राम, तन में राम, रोम रोम में राम रे
राम सुमीर ले, ध्यान लगा ले, छोड़ जगत के काम रे
बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम
बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम .. "
इन दिनों राम और राम मन्दिर के समर्थन व विरोध में या यूँ कहें कि पक्ष एवं विपक्ष (राजनीतिक दल वाले नहीं) के संदर्भ में चहुँओर चिल्लपों मची हुई है। जिसके फलस्वरूप उपरोक्त भजन को बारम्बार गौर से सुनने के बाद .. विशेषकर इसके मुखड़े को सुनकर, इससे जुड़ी जो पैरोडीनुमा बतकही हमारे दिमाग़ में एकबारगी कौंधी .. उसे यहाँ ज्यों का त्यों परोस रहे हैं -
तेरे मन में राम .. तन में राम .. रोम रोम में राम रे,
फिर शोर क्यों इत्ता, आएगा कौन अयोध्या धाम रे ?
बन तो जाए हर नर राम, जो हो जाए निष्काम रे,
फिर शोर क्यों इत्ता, आएगा कौन अयोध्या धाम रे ?
ख़ैर ! .. यूँ तो आज की मूल बतकही के लिए हमें इन राम और राम मन्दिर के समर्थन-विरोध वाले पचड़े में तनिक भी नहीं उलझना है .. बस यूँ ही ...
दरअसल जिन प्रतिमाओं के समक्ष आस्तिकों के सिर श्रद्धाभाव से झुकते हैं तथा उन्हें उनमें तदनुसार उनके भगवान के दर्शन होते हैं ; उन्हीं प्रतिमाओं को देखकर नास्तिकों (?) के मन में उन प्रतिमाओं को गढ़ने वाले रचनाकार के प्रति आदरभाव उपजते हैं .. शायद ...
ठीक उसी तरह जब कभी भी उपरोक्त भजन या अन्य भजन भी हम सभी आमजन भक्तिभाव से सुनते हैं, तो प्रायः ज्यादा से ज्यादा उसके गायक-गायिका के नाम को ही जानते हैं या उनकी भूरी भूरी प्रशंसा कर पाते हैं ; परन्तु उस भजन के रचनाकार को जानने का प्रयास तक नहीं करते हैं .. शायद ...
जिस तरह हम अक़्सर चमड़ी के रंग, नाक-नयन-नक़्श, पहनावा, पद, दौलत, चेहरे पर पुते सौन्दर्य प्रसाधनों की परतों, 'डिओ' की महक, केश-सज्जा की ऊपरी कसौटी पर ही किसी भी इंसान का मूल्यांकन करते हैं ; नाकि उसकी सोच, उसके विचार के आधार पर उसके मन में झाँक कर उसे आँकते हैं ; ठीक उसी प्रकार हम प्रायः किसी भी फ़िल्म का अवलोकन करते हैं या फ़िल्म के गीतों को देखते-सुनते हैं, तो केवल पर्दे के सामने वाले कलाकार को ही देख-जान पाते हैं।
परन्तु .. पर्दे के पीछे के सैकड़ों लोगों के श्रम से पूर्णतः या अंशतः अनभिज्ञ रह जाते हैं। मसलन - किसी भी फ़िल्म में नायक-नायिका के अलावा उनके सैकड़ों सह-कलाकार, लेखक, पटकथा लेखक, संवाद लेखक, गीतकार, संगीतकार और उनके ढेर सारे साज़िंदे, गायक-गायिका, नृत्य परिकल्पक (Dance Choreographer), कलाकारों के चुनाव करने वाले निर्देशक (कास्ट डायरेक्टर / Cast Director) और उनकी 'टीम' में काम करने वाले दसों लोग, रूपकार (Make up Man), केश सज्जाकार (Hair Dresser), पोशाक रूपांकक (Dress Designer), छायाकार (Cameraman), प्रकाश संयोजक (Light man) व उनका दल और उनके भी दसों सहयोगी, निर्देशक, सह-निर्देशक, निर्माता, 'शूटिंग' के वक्त सहयोग करने वाले सैकड़ों 'स्पॉट बॉय', फ़िल्म संपादक (Film Editor), पार्श्व स्वर अंतरण करने वाले कलाकार (वॉयस ओवर आर्टिस्ट / Voice over artist) इत्यादि जैसे हजारों लोगों के मानसिक एवं शारीरिक श्रमसाध्य परिश्रम के परिणामस्वरुप ही तो हम पर्दे के सामने वाले नायक-नायिका की भूरी भूरी प्रशंसा कर पाते हैं .. शायद ...
लब्बोलुआब ये है कि जिस उपरोक्त राममय भजन के लिए हम केवल अनूप जलोटा जी को ही जानते हैं, वास्तव में उपरोक्त राममय भजन के रचनाकार हैं .. दिवंगत राजेश जौहरी जी (1952-2017), जो अपने समय के एक जानेमाने कवि, गीतकार, पटकथा लेखक, संगीतकार के साथ-साथ एक सफ़ल विज्ञापन फ़िल्म निर्माता, उद्घोषक (एंकर / Anchor) और पार्श्व स्वर अंतरण करने वाले कलाकार (वॉयस ओवर आर्टिस्ट / Voice over artist) भी थे। दरअसल अनुप्राणन (एनिमेशन / Animation) फिल्मों और हास्य-व्यंग्य (कार्टून / Cartoon) फिल्मों में या फिर एक भाषा से अन्य भाषा में पूरी फ़िल्म को 'डब' करने के लिए 'वॉयस ओवर आर्टिस्ट' ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मन से जो कलाकार होते हैं वे अमूमन जाति-धर्म और क्षेत्रवादिता के बाड़ों से मुक्त होते हैं, तभी तो ..
सुख के सब साथी, दुःख में न कोई,
सुख के सब साथी, दुःख में न कोई,
मेरे राम, मेरे राम,
तेरा नाम इक सांचा, दूजा न कोई
जैसे फ़िल्मी भजन को मोहम्मद रफ़ी साहब बेहिचक गा जाते हैं और दिलीप कुमार उर्फ़ युनूस खान "गोपी" फ़िल्म के लिए कैमरे के सामने बिना भेदभाव के लिप्यांतरण कर जाते हैं। जबकि जाति-धर्म और क्षेत्रवादिता के बाड़े में क़ैद कई लोग तो भारत माता की जय या वंदे मातरम् बोलने तक में गुरेज़ करते हैं .. शायद ...
राजेश जौहरी के पुरख़े भी यूँ तो उत्तरप्रदेश के रहने वाले थे, पर उनका जन्म राजस्थान के पिलानी में हुआ था । उनके पिता जी- डॉ ए एन जौहरी जी अंग्रेजी साहित्य के 'प्रोफेसर' और एक लेखक भी थे। उनकी माँ- चंद्रा जौहरी जी भी शिक्षित महिला थीं। कहते हैं कि उन्होंने दस साल की उम्र में ही अपनी पहली कविता लिखी थी। संगीत और साहित्य में उनकी गहरी रुचि थी। उनके पिता जी की दादी जी- हीरा कुँवर जी भगवान कृष्ण की स्तुति में भजन लिखती थीं और उन्हीं से उन्हें भजन लिखने की प्रेरणा प्राप्त हुई थी।
बतलाते हैं, कि चूँकि उनके माता-पिता उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने उन्हें भौतिकी में स्नातकोत्तर करवाया था। पर एक दिन उनके लेखन की रचनात्मकता उन्हें उत्तरप्रदेश के सहारनपुर से बम्बई खींच कर (मुम्बई) ले गयी ; जहाँ तत्कालीन संगीत उद्योग से उनका दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं होने के कारण आरंभिक दौर में उन्हें संघर्ष करना पड़ा था।
पर उन बाधाओं को अपने बूते पर पार कर बहुमुखी प्रतिभा के धनी राजेश जौहरी जी ने एक तरफ तो मोहम्मद रफ़ी साहब से लेकर अनूप जलोटा जी तक के लिए अनगिनत भजन लिखे थे ; तो दुसरी तरफ हरिहरन जी के गाए हुए ग़ज़लों के लोकप्रिय "हलका नशा" नामक 'एल्बम' के लिए ग़ज़लें भी लिखी थीं। इसके अलावा एक अन्य बहुत ही लोकप्रिय 'एल्बम'- अलीशा चिनॉय के "बेबी डॉल" ने भारतीय पॉप की दुनिया में उनकी एक अलग ही पहचान बनायी है। अमीन सयानी जी, जिन्हें वे उद्घोषक के रूप में अपना गुरु मानते थे, के साथ भी काम करने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त हुआ था।
अपने समय के कई विज्ञापन-गीतों (Advertising Jingles) को भी अपनी आवाज़ देकर उन्होंने लोकप्रिय बनाया था। मसलन- अजंता घड़ियाँ, नेस्कैफे कॉफ़ी, वर्धमान निटिंग यार्न को 'वॉयस ओवर आर्टिस्ट' व 'एंकर' होने के नाते अपनी आवाज़ दी थी। एशियन स्काई शॉप, सीमा सुरक्षा बल और दिल्ली पुलिस के लिए कथानक गीत (Theme Song) उनके उल्लेखनीय कार्यों में शामिल हैं।
2023 में आयी फ़िल्म- "थैंक यू फॉर कमिंग" के एक गीत "परी हूं मैं" के गीतकार के रूप में भी उनकी एक अन्य उप्लब्धि है ; क्योंकि ये गीत उन्हीं के लिखे और 1991 में सुनीता राव के 'एल्बम'- "धुआं" के गाने "परी हूं मैं" का 'रीमेक' है।
उनकी धर्मपत्नी- अर्चना जौहरी भी बहुमुखी प्रतिभाशाली पटकथा लेखिका, उद्घोषिका और कवयित्री भी हैं। उनकी दो बेटियों में .. बड़ी बेटी रतिका जौहरी भी कई 'एल्बम', धारावाहिकों और फिल्मों के लिए एक गायिका के रूप में अपनी आवाज दे रही हैं तथा छोटी बेटी- राशी जौहरी भी एक उद्घोषिका, 'कोरियोग्राफर' और निर्देशक के साथ-साथ एक 'इवेंट कंपनी'- 'ज़ोडियाक इवेंट्स' की संस्थापिका भी हैं।
लब्बोलुआब ये है कि हमें और हमारी बाल व युवा पीढ़ी को भी, जो "ठंडा मतलब कोकाकोला" जैसे विज्ञापन-गीत (Advertising Jingle) को गा-गाकर लोकप्रिय बना तो देती है, पर उसके रचनाकार "प्रसून जोशी" को कम जानती है, परन्तु हमें इन महान विभूतियों के बारे में भी जानना चाहिए। हो सकता है, कि इनकी प्रेरणा से हम में से कोई राजेश जौहरी-सा बहुमुखी प्रतिभाशाली बन जाए और .. कुछ और राममय भजन रच दे .. शायद ...
फ़िलहाल तो .. आइए ! .. हम भी तथाकथित राम के रंग में रंग जाते हैं .. निम्न दोनों भजनों के साथ .. बस यूँ ही ...
बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम
बोलो राम राम राम, बोलो राम राम राम