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Sunday, September 14, 2025

21 सितंबर को अघोषित कर्फ्यू ...


सुना है कि .. आज हर वर्ष की भांति 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस है। वैसे आपको ये भी मालूम ही होगा कि .. 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है।

आज से ठीक एक सप्ताह बाद यानी 21 सितंबर को ..तीस वर्ष पहले 1995 में दिन था गुरुवार , जिस दिन so called भक्तगण non veg (मांसाहार) नहीं खाते हैं। बाक़ी दिन तो भकोसते ही हैं।

तो .. उस 21 सितंबर 1995 को पूरे भारतवर्ष में अघोषित कर्फ्यू लग गई थी। लोग शहर भर में आ- जा रहे तो थे, पर एक ही विशेष स्थान पर। विशेषतौर पर चाय की दुकानें बंद हो गईं थीं। दूध के लिए त्राहिमाम हो रहा था। याद आई वो घटना ?

1995 के बाद जन्मे हुए लोगों को बतलाते चलें कि .. उस दिन भारत ही नहीं , विश्व भर में तथाकथित (so called) गणेश की प्रतिमा दूध पी रही थी। हमारी तो उसी साल जून महीने में शादी हुई थी। तो .. हम तो मन ही मन ख़ुश हो रहे थे, कि .. अब तो मेरे ऊपर भी कृपा बरसेगी। जब गणेश जी दूध पी रहे हैं तो हमारी धर्मपत्नी के गोद में भी दूध पीने वाला या वाली का शीघ्र ही पदार्पण होगा। पर वो तो पधारा .. दो वर्षों बाद 1997 में। वो भी दिन- रात के अथक .. ओह ! .. सॉरी .. सॉरी, दिन- रात नहीं, बल्कि कई रातों वाले हमारे अथक परिश्रम के। 

और .. गणेश जी का दूध पीना बंद हुआ .. वैज्ञानिकों के द्वारा केशिका क्रिया (Capillary Action) को समझाए जाने पर। वर्ना हम आज भी अंधश्रद्धा में चूर .. भ्रमित होकर दूध की धारों को नालियों और सड़कों पर बहा रहे होते और शहर भर में चाय की तमाम दुकानें भी बंद ही पड़ी रहतीं।

ठीक ऐसा ही भ्रम हमारे समाज में कुछ बुद्धिजीवियों के गुटों ने फैलाया है - "मेरी भाषा, मेरी पहचान" जैसा नारा (Slogan) बोल कर। इस नारा से मिलने वाली पहचान का तो पता नहीं, उल्टा हमें ये नारा कमजोर बनाता है। भाषाएं हमें एक नहीं करतीं, अलग करती हैं, पृथक करती हैं। अपने देश में ही भिन्न भिन्न भाषा- भाषियों से या विश्व के अन्य समाज से। ठीक जाति, उपजाति और धर्म- मज़हब की तरह। किसी एक भाषा की जानकारी और उस से बंधना या उस में अपनी पहचान की आशा या तलाश करना हमें बंधन प्रदान करती है, जबकि कई भाषाओं से जुड़ाव या जानकारी हमें विस्तार और गति देती है .. शायद ...

जिस मराठी भाषा के लिए वर्तमान में चंद लोग कुत्ते- बिल्ली की तरह लड़ रहे हैं। उसी मराठी भाषा की मराठी भाषी होते हुए भी लता मंगेशकर जी देशी- विदेशी 20 से भी ज़्यादा भाषाओं में गाना गायीं थीं। कुत्ते- बिल्लियों की भौं- भौं और म्याऊँ- म्याऊँ भले ही उनकी पहचान हो सकती है। परन्तु .. इंसानों के लिए "मेरी भाषा, मेरी पहचान" जैसा भ्रम फैलाना मतलब .. अपनी युवा पीढ़ी को कुएँ का मेढक बनाने जैसा ही हैं। उदाहरण  स्वरूप हम उत्तराखंड के संदर्भ में गढ़वाल या कुमायूँ क्षेत्र की बात करें तो .. आज प्रसून जोशी की पहचान समस्त देश में उनकी कुमाऊनी भाषा से नहीं बनी है, बल्कि .. उस कुमाऊनी भाषा से इतर हिंदी भाषा में लिखने से बनी है .. शायद ...

भ्रम का एक अन्य उदाहरण .. आज ही सुबह- सुबह "पाँच लिंकों के आनन्द" नामक ब्लॉग के जन्मदाता व अभिभावक और साथ ही हम सभी के अग्रज भी .. श्री दिग्विजय अग्रवाल जी ने सोशल मीडिया के एक अभिन्न मंच फ़ेसबुक पर एक पोस्ट लिखा कि :- 

लोगों का तर्क है कि 

“अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है”

दुनिया में 204 देश हैं

और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में ही बोली, पढ़ी और समझी जाती है, 

फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है?

ऐसे में मुझसे रहा नहीं गया .. उनके अग्रज होने के बावजूद हमने उन्हें सच्चाई से अवगत कराया। वैसे भी पुरखे या बड़े जो भी कह गए या कह रहे हैं ; उन्हें आँखें मूंद कर मान लेना एक जिम्मेवार इंसान या नागरिक का काम नहीं है। हरेक इंसान को स्वयं तार्किक होना ही चाहिए और .. भावी पीढ़ी को भी प्रश्न करने से नहीं रोकना चाहिए .. शायद ...

ऐसे में हमारी उपलब्ध जानकारी के आधार पर हमारा उत्तर था, कि : - 

महोदय,

सुप्रभात सह सादर नमन,🙏

ऐसा इसलिए नहीं कहा जाता कि अंग्रेज़ी विश्व भर के आम लोगों की बोलचाल की भाषा है, बल्कि ऐसा इसीलिए बोला जाता है या वास्तविकता भी है कि -

वर्तमान में .. वैश्विक विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अंतरराष्ट्रीय व्यापार, शिक्षा, कूटनीति, मनोरंजन, रेडियो, समुद्री यात्रा और विमानन की सम्पर्क या सामान्य भाषा अंग्रेजी ही है।

मसलन - समस्त विश्व में  वैज्ञानिकों के द्वारा पानी को H2O और सोना को Au ही लिखा, पढ़ा, बोला या समझा जाता है।

वैसे तो .. विश्व भर में तथाकथित धर्मग्रंथों की ही भाषाएँ नाना प्रकार की होती हैं .. शायद ...