खींचे समाज ने
रीति-रिवाज के,
नियम-क़ानून के,
यूँ तो कई-कई
लक्ष्मण रेखाएँ
अक़्सर गिन-गिन।
फिर भी ..
ये मन की मीन,
है बहुत ही रंगीन ...
लाँघ-लाँघ के
सारी रेखाएँ ये तो,
पल-पल करे
कई-कई ज़ुर्म संगीन,
संग करे ताकधिनाधिन ,
ताक धिना धिन ..
क्योंकि ..
ये मन की मीन,
है बहुत ही रंगीन ...
ठहरा के सज़ायाफ़्ता,
बींधे समाज ने यदाकदा,
यूँ तो नुकीले संगीन।
हो तब ग़मगीन ..
बन जाता बेजान-सा,
हो मानो मन बेचारा संगीन ..
तब भी ..
ये मन की मीन,
है बहुत ही रंगीन ...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ... विशेष अतिरिक्त नमन आपके हौसलों को .. जो आपको इस शारीरिक रूप से विकट हालात में भी आपको रचनाएँ और प्रतिक्रियाओं को उकेरने के लिए प्रेरित कर रही है ...
Deleteये मन की मीन,
ReplyDeleteहै बहुत ही रंगीन ...
सादर..
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteनमस्कार सर, मन की मीन हमेशा रंगीन नही होती कभी कभी black and white भी होती है। 😊😊
ReplyDelete😂😂😂
Deleteमन की मीन
ReplyDeleteतैरती है भावनाओं की नदी में
कभी मौसमी बारिश में
किलकती है खेलती हैं
लगती है रंगीन
और
कभी सूखती नदी की
तट की रेत पर पड़ी
तड़पकर अंतिम साँसें
गिनती हैं
करती है गमगीन।
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सादर।
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबहुत ही भावपूर्ण रचना रच डाली आपने प्रतिक्रियास्वरुप .. पर प्रायः मन-सी रंगीन मछलियाँ सागरों-महासागरों के खारे पानी में ही पायी जाती हैं और वहाँ पानी के सूखने की आशंका या भय नहीं होता .. शायद ...
अगर मन की मीन को छिछली-छिछोरी नदियों की जगह, समुद्री खारे पानी में तैरना ही ठीक होगा .. बस यूँ ही ...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 12 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी ! सुप्रभातम् वाले नमन संग आभार आपका ...
Deleteये मन की मीन केवल रंगीन ही नहीं होती , कभी कभी रंगीन मिज़ाज़ भी होती हैं और ऐसी मीन दूसरे की मासूम मीन को अपने क्षेत्र से धकिया देती हैं । न समाज की परवाह होती है न परिवार की ।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका .. पर अनायास एक प्रश्नवाचक चिन्ह मन में उग आया आपके गूढ़, रहस्यमयी वाक्यांश से ... "न समाज की परवाह होती है न परिवार की।" .. अगर इस पर थोड़ा प्रकाश भेजतीं तो .. शायद ... (?)...
Deleteबहुत सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteये मन की मीन,
ReplyDeleteहै बहुत ही रंगीन .//
बहुत बढिया सुबोध जी | ये मन की मीन यदि रंगीन ना हो तो कहाँ प्रेम के गीत जन्में , कहाँ पनपें !कितने सृजन अधूरे रह जाएँ !कितने भाव भीतर ही घुटकर दम तोड़ दें ! सो , ये मन की मीन रंगीन ही रहे तो बेहतर | अपनी तरह की आप रचना | नये बिम्ब विधान के साथ !हार्दिक शुभकामनाएं आपको |
जी ! नमन संग आभार आपका .. आपकी प्रतिक्रिया की विशेष शैली में की गयी रंगीन प्रतिक्रिया के लिए .. प्रकृति की हर सकारात्मक किरणें आपके जीवन को सपरिवार भिंगाती रहे ...
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
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