देख अचम्भा लगे हैं हर बार,
यूँ ऋषिकेश में गंगा के तीर।
निज प्यास बुझाए बेझिझक,
कोई उन्मुक्त पीकर गंगा नीर।
मोक्ष के आकांक्षी उन्मत्त कई
डुबकी लगाते हैं पकड़े ज़ंजीर .. शायद ...
महकाए यादें मेरी जब तक सोंधी पंजीरी-सी
अंतर्मन को तेरे, तभी तक हैं वो मानो वागर्थ।
पर अनचाहे श्वेत प्रदर की तरह जब कभी भी
अनायास उनसे आएं दुर्गन्ध, तब तो हैं व्यर्थ।
प्रिये ! तुम्हें मेरी सौगंध, दुर्गन्ध सम्भालने की
मत करना कभी भी तुम कोई बेतुका अनर्थ।
कर देना याद-प्रवाह, बिना परवाह पल उसी,
धार में अपनी वितृष्णा की, ये अंत देगा अर्थ .. बस यूँ ही ...
और अन्त में .. चलते-चलते .. 02.01.2023 को रात 10 बजे से प्रसार भारती, देहरादून से प्रसारित होने वाली एक कवि गोष्ठी में पढ़ी गयी अपनी बतकही की रिकॉर्डिंग ...
अब .. औपचारिकतावश ही सही .. तथाकथित नववर्ष की .. वास्तविक हार्दिक शुभकामनाएं समस्त पृथ्वीवासियों के लिए .. प्रकृति हर पल .. बस .. सद्बुद्धि की वर्षा करती रहे, ताकि हम सभी पाखण्ड और आतंक से परे .. सौहार्द से सराबोर होते रहें .. अपने लिए ना सही, आने वाली भावी पीढ़ियों के लिए कम से कम तथाकथित समाज में तथाकथित धर्म-सम्प्रदाय या जाति-उपजाति की विष वेल की जगह सरगम के बीजों को बोएँ, सद्भावनाओं के पौधे रोपें .. जिनके वृक्षों का आनन्द हम ना सही, वो ले सकें .. बस यूँ ही ... 🙏🙏🙏
विविध विषयों को एक साथ एक पन्ने पर समेट दिया है आपने।
ReplyDeleteआकाशवाणी में काव्य पाठ के लिए शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
रचनात्मकता के मार्ग सदैव नवीन उपलब्धियों से भरे पूरे हों यही कामना है।
सादर।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ जनवरी २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी ! सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका मेरी विविध विषयों पर एक ही पन्ने में की गयी बतकही को एक विशिष्ट मंच पर अपनी प्रस्तुति में स्थान देने के लिए ...
Deleteमहकाए यादें मेरी जब तक सोंधी पंजीरी-सी
ReplyDeleteअंतर्मन को तेरे, तभी तक हैं वो मानो वागर्थ।
वजनदार रचना
बधाई, शुभकामनाएं
सादर आभार
जी ! सुप्रभातम सह नमन संग आभार आपका आपकी शुभकामनाओं के लिए .. ताउम्र प्रकृति सकारात्मक दृष्टिकोण रखे आपके लिए .. बस यूँ ही ...
Deleteरचनात्मकता लिए सुंदर,अद्भुत लेखन।
ReplyDeleteरेडियो काव्यगोष्ठी के लिए हार्दिक बधाई।
रेडियो पर कवि गोष्ठी में शामिल होने पर हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteगंगा तीर इससे भी ज्यादा अचम्भा हो सकता है जब हाथ में ले कर करो आचमन गंगा नीर ।
बाकी रही यादों को महकाने और भूल जाने की बात तो ..... अजब गजब उपमाएँ दी हैं ।
रिकॉर्डिंग के लिए आभार ।
नव वर्ष की शुभकामनाएँ।
बहुत ही लाजवाब सृजन ।
ReplyDeleteरेडियो पर कवि गोष्ठी मे शामिल होने हेतु हार्दिक बधाई आपको।
वीडियो रिकॉर्डिंग में तीनों कविताएं बहुत ही लाजवाब ।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।
बहुत ही सुन्दर रचनाएं मन को झंकृत करती हुई
ReplyDeleteरेडियो पर कवि गोष्ठी के लिए हार्दिक बधाई अति सुन्दर रचनाएं