Wednesday, July 29, 2020

मुहावरे में परिवर्तन

अक़्सर जीते हैं 
आए दिन 
हम कुछ 
मुहावरों का सच,
मसलन ....
'गिरगिट का रंग',
'रंगा सियार'
'हाथी के दाँत',
'दो मुँहा साँप'
'आस्तीन और साँप',
'आँत की माप'
वग़ैरह-वग़ैरह ..
वैसे ये सारे 
जानवर तो 
हैं बस बदनाम,
बस यूँ ही  ...

जानवरों की 
हर फ़ितरत ने
इंसानों से 
आज मात
है खायी
और फिर ..
बढ़ भी गई है
अब शायद
बावन हाथ वाले 
आँत की लम्बाई।
ऐसे में लगता नहीं 
अब क्या कि ...
करना होगा हर
मुहावरे में परिवर्तन,
हमारे संविधान-सा 
यथोचित संशोधन ? ...

22 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 29 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आज के मनुष्य के आचरण पर कई मुहावरे सटीक बैठ रहे हैं। आपकी कविता से समाज को यह संकेत जाता है।सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.7.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  5. सुन्दर प्रस्तुति.. सही कहा मुहावरों को बदलने की जरूरत तो है...कई बार बदल भी दिया जाता है...

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  6. Replies
    1. बहुत आला दर्ज़ा आलमी कलम जनाब की ,आदाब अता करता हूँ।

      veeruji05.blogspot.com

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    2. जी ! आभार आपका ...

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    3. जी ! आभार आपका ...

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