एक ऐतिहासिक क़ब्रिस्तान के बहाने ...
जीत का ज़श्न हो कहीं या
हार का मातम कहीं .. कभी भी
अपनों की हो या दुश्मनों की
लाश तो लाश होती है
है ना !? ...
इस लाश की शाख़ पर
देखा है आपने भी अक़्सर
या तो कई अनाथ बिलखते हैं
या एक विधवा पनपती है
है ना !? ...
(निम्नलिखित एक ऐतिहासिक क़ब्रिस्तान-पटना सिटी क़ब्रिस्तान को निहारने के क्रम में उपर्युक्त चंद पंक्तियाँ मन में कुलबुलायी थीं। अब उसका ऐतिहासिक विवरण ...)
" पटना सिटी क़ब्रिस्तान "
------------------------------
पूर्व की ओर लगातार ईस्ट इण्डिया कम्पनी से हारने और पीछे हटते जाने पर मज़बूर नवाब मीर कासिम ने September' 1763 में मुंगेर ( बिहार ) में नरसंहार किया। बदले की आग तब भी न बुझने पर उसने 5 तथा 11 October'1763 को 198 अंग्रेज कैदियों को मौत के घाट उतार दिया।
वाल्टर रीनहार्ट या सोमरू (क्योंकि उनका चेहरा सदा गंभीर या 'Somber' बना रहता था) जो मीर क़ासिम के लिए कार्य करने वाले जर्मन काइयां कर्मचारी था, इस नरसंहार को अंजाम देने वाला मुख्य व्यक्ति था। पटना फैक्ट्री का एक सर्जन डॉ. फुलरटन इससे बच पाने वाला एकमात्र व्यक्ति था।
पुरातन पटना कब्रिस्तान के एक कोने पर बंगाल सरकार द्वारा 1880 में एक शिला लगवाई गई जिसमें नरसंहार में मारे गए ईस्ट इण्डिया कम्पनी के केवल 28 व्यक्तियों के नाम हैं। यह शिला 70 फीट ऊँची है, जिसके शिखर पर एक अवशेष-पात्र ( Urn ) है। यह मृतकों की यादगारी और ब्रिटिश साम्राज्य की नई स्थापित शक्ति की उद्घोषणा दोनों का प्रतीक था। स्मारक की वास्तुकला विभिन्न प्रकार की है जो पुराने संगमरमर से बने हैं।
कहते हैं कि यह उसी कुएँ के ऊपर बना है, जिसमें अंग्रेजों के मृत शरीर डाल दिए गए थे। यह हत्याकांड अली वर्दी खां के एक भाई हाफ़िज़ अहमद के घर पर ( जो शायद आज की चैरिटेबल डिस्पेंसरी के स्थान पर था ) और एक 40 खम्भों वाले हॉल "चहल सातून" ( मदरसा- मस्जिद की बगल में चिमनी घाट पर ) में हुआ। इस इलाके को ' गुरहट्टा' नाम से जाना जाता है। शायद यह क़ब्रिस्तान ( गोरस्थान ) के बगल में लगने वाले बाज़ार ( हाट ) का मिश्रण है। कुछ लोगों का मानना है कि इस जगह का नाम 1763 में गोरों की हत्या ( गोरा-हत्या ) से पड़ा। .
(N. B. - लेख शिला-लेख के आधार पर).
जीत का ज़श्न हो कहीं या
हार का मातम कहीं .. कभी भी
अपनों की हो या दुश्मनों की
लाश तो लाश होती है
है ना !? ...
इस लाश की शाख़ पर
देखा है आपने भी अक़्सर
या तो कई अनाथ बिलखते हैं
या एक विधवा पनपती है
है ना !? ...
(निम्नलिखित एक ऐतिहासिक क़ब्रिस्तान-पटना सिटी क़ब्रिस्तान को निहारने के क्रम में उपर्युक्त चंद पंक्तियाँ मन में कुलबुलायी थीं। अब उसका ऐतिहासिक विवरण ...)
" पटना सिटी क़ब्रिस्तान "
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पूर्व की ओर लगातार ईस्ट इण्डिया कम्पनी से हारने और पीछे हटते जाने पर मज़बूर नवाब मीर कासिम ने September' 1763 में मुंगेर ( बिहार ) में नरसंहार किया। बदले की आग तब भी न बुझने पर उसने 5 तथा 11 October'1763 को 198 अंग्रेज कैदियों को मौत के घाट उतार दिया।
वाल्टर रीनहार्ट या सोमरू (क्योंकि उनका चेहरा सदा गंभीर या 'Somber' बना रहता था) जो मीर क़ासिम के लिए कार्य करने वाले जर्मन काइयां कर्मचारी था, इस नरसंहार को अंजाम देने वाला मुख्य व्यक्ति था। पटना फैक्ट्री का एक सर्जन डॉ. फुलरटन इससे बच पाने वाला एकमात्र व्यक्ति था।
पुरातन पटना कब्रिस्तान के एक कोने पर बंगाल सरकार द्वारा 1880 में एक शिला लगवाई गई जिसमें नरसंहार में मारे गए ईस्ट इण्डिया कम्पनी के केवल 28 व्यक्तियों के नाम हैं। यह शिला 70 फीट ऊँची है, जिसके शिखर पर एक अवशेष-पात्र ( Urn ) है। यह मृतकों की यादगारी और ब्रिटिश साम्राज्य की नई स्थापित शक्ति की उद्घोषणा दोनों का प्रतीक था। स्मारक की वास्तुकला विभिन्न प्रकार की है जो पुराने संगमरमर से बने हैं।
कहते हैं कि यह उसी कुएँ के ऊपर बना है, जिसमें अंग्रेजों के मृत शरीर डाल दिए गए थे। यह हत्याकांड अली वर्दी खां के एक भाई हाफ़िज़ अहमद के घर पर ( जो शायद आज की चैरिटेबल डिस्पेंसरी के स्थान पर था ) और एक 40 खम्भों वाले हॉल "चहल सातून" ( मदरसा- मस्जिद की बगल में चिमनी घाट पर ) में हुआ। इस इलाके को ' गुरहट्टा' नाम से जाना जाता है। शायद यह क़ब्रिस्तान ( गोरस्थान ) के बगल में लगने वाले बाज़ार ( हाट ) का मिश्रण है। कुछ लोगों का मानना है कि इस जगह का नाम 1763 में गोरों की हत्या ( गोरा-हत्या ) से पड़ा। .
(N. B. - लेख शिला-लेख के आधार पर).
आठ पंक्तियाँ क़माल की हैं..बहुत अच्छी और तथ्यों पर आधारित ऐतिहासिक लेख बहुत सराहनीय है।
ReplyDeleteआभार आपका ...
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