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मन
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Saturday, March 27, 2021
सुलग रही है विधवा ...
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गहनों से सजानी थी उसे जो अगर अपनी दुकानें, तो खरा सोना पास अपने यूँ भला रखता क्योंकर? सकारे ही तोड़े गए सारे फूल, चंद पत्थरों के लिए, बाग़ीचा ...
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Saturday, November 16, 2019
मैल हमारे मन के ...
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ऐ हो धोबी चच्चा ! देखता हूँ आपको सुबह-सवेरे नित इसी घाट पर कई गन्दे कपड़ों के ढेर फ़िंचते जोर से पटक-पटक कर लकड़ी या पत्थर के पाट पर डाल...
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Friday, October 18, 2019
मन को जला कर ...
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माना कि ... बिना दिवाली ही जलाई थी कई मोमबत्तियाँ भरी दुपहरी में भीड़ ने तुम्हारी और कुछ ने ढलती शाम की गोधूली बेला में शहर के उस मशहूर...
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