बंजारा बस्ती के बाशिंदे
Saturday, March 27, 2021

सुलग रही है विधवा ...

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गहनों से सजानी थी उसे जो अगर अपनी दुकानें, तो खरा सोना पास अपने यूँ भला रखता क्योंकर? सकारे ही तोड़े गए सारे फूल, चंद पत्थरों के लिए, बाग़ीचा ...
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Wednesday, March 24, 2021

दास्तानें आपके दस्ताने की ...

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पापा ! ... वर्षों पहले तर्ज़ पर सुपुर्द-ए-ख़ाक के  आपके सुपुर्द-ए-राख होने पर भी, आज भी वर्षों बाद जब कभी भी फिनाईल की गोलियों के या फिर कभी  ...
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Saturday, March 20, 2021

सच्ची-मुच्ची ... (21 मार्च के बहाने ...)

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सर्वविदित है कि 21 मार्च को पूरे विश्व में "विश्व कविता दिवस" (World Poetry Day) के साथ-साथ ही नस्लीय भेदभाव को मिटाने के लिए इस क...
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Saturday, March 13, 2021

सरस्वती हमारी बेकली की ...

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जानाँ ! .. उदास, अकेली,  विकल रहो तुम  जब कभी भी,  बस .. तब तुम मान लिया करो .. कि .. हाँ .. कुछ भी मानने की रही नहीं है कोई मनाही कभी भी .....
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Wednesday, March 10, 2021

अन्योन्याश्रय रिश्ते ...

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दुबकी जड़ें मिट्टियों में कुहंकती तो नहीं कभी, बल्कि रहती हैं सींचती दूब हो या बरगद कोई। ना ग़म होने का मिट्टी में, ना ही शिकायत कोई कि बेलें ...
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Saturday, March 6, 2021

मन में ठौर / कतरनें ...

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कई बार अगर हमारे जीवन में सम्पूर्णता, परिपूर्णता या संतृप्ति ना हो तो प्रायः हम कतरनों के सहारे भी जी ही लेते हैं .. मसलन- कई बार या अक़्सर ह...
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Wednesday, March 3, 2021

झुर्रीदार गालों पर ...

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गया अपने ससुराल  एक बार जब  बेचारा एक बकलोल*। था वहाँ शादी के मौके पर हँसी-ठिठोली का माहौल। रस्म-ओ-रिवाज़ और  खाने-पीने के संग-साथ , किए हुए...
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Subodh Sinha
आम नागरिक, एक इंसान बनने की कोशिश
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