Saturday, March 13, 2021
सरस्वती हमारी बेकली की ...
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जानाँ ! .. उदास, अकेली, विकल रहो तुम जब कभी भी, बस .. तब तुम मान लिया करो .. कि .. हाँ .. कुछ भी मानने की रही नहीं है कोई मनाही कभी भी .....
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Wednesday, March 10, 2021
अन्योन्याश्रय रिश्ते ...
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दुबकी जड़ें मिट्टियों में कुहंकती तो नहीं कभी, बल्कि रहती हैं सींचती दूब हो या बरगद कोई। ना ग़म होने का मिट्टी में, ना ही शिकायत कोई कि बेलें ...
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Saturday, March 6, 2021
मन में ठौर / कतरनें ...
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कई बार अगर हमारे जीवन में सम्पूर्णता, परिपूर्णता या संतृप्ति ना हो तो प्रायः हम कतरनों के सहारे भी जी ही लेते हैं .. मसलन- कई बार या अक़्सर ह...
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Wednesday, March 3, 2021
झुर्रीदार गालों पर ...
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गया अपने ससुराल एक बार जब बेचारा एक बकलोल*। था वहाँ शादी के मौके पर हँसी-ठिठोली का माहौल। रस्म-ओ-रिवाज़ और खाने-पीने के संग-साथ , किए हुए...
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Friday, February 26, 2021
कुरकुरी तीसीऔड़ियाँ / रुमानियत की नमी ...
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जानाँ ! ... तीसी मेरी चाहत की और दाल तुम्हारी हामी की मिलजुल कर संग-संग , समय के सिल-बट्टे पर दरदरे पीसे हुए , रंगे एक रंग , सपनों की परतो...
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Wednesday, February 24, 2021
तसलवा तोर कि मोर - (भाग-२) ... {दो भागों में}.
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कोई रंगकर्मी जब अपने नाम से कम और अपने जिए गए पात्र के नाम से लोगों में ज्यादा जाना-पहचाना या सम्बोधित किया जाने लगता है तो उसे उसके अभिनय क...
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Saturday, February 20, 2021
मन का व्याकरण ...
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शुक्र है कि होता नहीं कोई व्याकरण और ना ही होती है कोई वर्तनी , भाषा में नयनों वाली दो प्रेमियों की वर्ना .. सुधारने में ही व्याकरण और...
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