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चन्द पंक्तियाँ - (१७) - "चहलकदमियाँ"- बस यूँ ही ...
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चन्द पंक्तियाँ - (१७) - "चहलकदमियाँ"- बस यूँ ही ...
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Friday, September 20, 2019
चन्द पंक्तियाँ - (१७) - "चहलकदमियाँ"- बस यूँ ही ...
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(१):- बस रात भर मोहताज़ है दरबे का ये फ़ाख़्ता वर्ना दिन में बारहा अनगिनत मुंडेरों और छतों पर चहलकदमियाँ करने से कौन रोक पाता हैं ...
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