(१):-
बस रात भर
मोहताज़ है
दरबे का
ये फ़ाख़्ता
वर्ना दिन में बारहा
अनगिनत मुंडेरों
और छतों पर
चहलकदमियाँ
करने से कौन
रोक पाता हैं भला
आकाश भी तो
नाप ही आता है
परों के औक़ात भर
ये मनमाना ...
(२):-
मेरी ही
नामौज़ूदगी के
लम्हों को
अपनी उदासी का
सबब बताते तो हैं
अक़्सर...
पर बारहा
उन लम्हों में
उन्हें गुनगुनाते
थिरकते
और मचलते भी
देखा है
रक़ीबों के गीतों पर...
(३):-
शौक़ जो पाला है
हमने मुजरे गाने के
तो ..... फिर ...
साज़िंदों पर रिझने
और उन्हें रिझाने का
सिलसिला
थमेगा कब भला !?...
मुजरे हैं तो
साजिंदे होंगे
और ...
फिर साजिंदे ही क्यों
अनगिनत क़द्रदानों के
मुन्तज़िर भी तो
ये मन
होगा ही ना !?...
(४):-
मदारी और मुजरे
कभी
हुआ करते थे
नुमाइश
और
वाह्ह्ह्ह्ह्-वाही के
मुन्तज़िर ...
इन दिनों
हम शरीफ़ों के
शहर में भी
ये चलन कुछ ...
पुरजोर हो चला है ...
बस रात भर
मोहताज़ है
दरबे का
ये फ़ाख़्ता
वर्ना दिन में बारहा
अनगिनत मुंडेरों
और छतों पर
चहलकदमियाँ
करने से कौन
रोक पाता हैं भला
आकाश भी तो
नाप ही आता है
परों के औक़ात भर
ये मनमाना ...
(२):-
मेरी ही
नामौज़ूदगी के
लम्हों को
अपनी उदासी का
सबब बताते तो हैं
अक़्सर...
पर बारहा
उन लम्हों में
उन्हें गुनगुनाते
थिरकते
और मचलते भी
देखा है
रक़ीबों के गीतों पर...
(३):-
शौक़ जो पाला है
हमने मुजरे गाने के
तो ..... फिर ...
साज़िंदों पर रिझने
और उन्हें रिझाने का
सिलसिला
थमेगा कब भला !?...
मुजरे हैं तो
साजिंदे होंगे
और ...
फिर साजिंदे ही क्यों
अनगिनत क़द्रदानों के
मुन्तज़िर भी तो
ये मन
होगा ही ना !?...
(४):-
मदारी और मुजरे
कभी
हुआ करते थे
नुमाइश
और
वाह्ह्ह्ह्ह्-वाही के
मुन्तज़िर ...
इन दिनों
हम शरीफ़ों के
शहर में भी
ये चलन कुछ ...
पुरजोर हो चला है ...
रात को दरबे में लौट आना -ये फाख्ता की शराफत है |
ReplyDeleteकिसी की नामौजूदगी को उदासी का सबब कहना एक रस्मी रवायत है
और वाह वाह से ही तो शरीफों के शहर में रौनक है वरना महफ़िल में गफ़लत के सिवा क्या है ?
छिपे अर्थों में बहुत कुछ कहती रचना सुबोध जी | आपका लेखन अलग पहचाना जाता है | सादर ------
चलिए ... मेरी रचना की सूनी हवेली में कम से कम एक प्रतिक्रिया का फ़ाख़्ता तो आया ... उर्दू मेरी बहुत ज्यादा ही कमजोर है वैसे ... पर जहाँ तक समझ पा रहा हूँ कि लोग बस औपचारिकतावश किसी को भी अपनी उदासी की वजह ठहरा देते हैं ... आप फ़ाख़्ता की शराफत मान रही हैं और मैं इसे उसकी मौकापरस्ती मान रहा हूँ ...सब खोखले वाह में तृप्त हैं .. अच्छा लगा , मेरी रचनाओं में निहित अर्थों को टटोलने के लिए ...हार्दिक आभार आपका रेणु जी ...
ReplyDeleteआपका लेखन भी शानदार और उर्दू का भी अच्छा ज्ञान है आपको। 🙏🙏
ReplyDeleteना ! ऐसा नहीं है ...
Deleteऐसा ही है :)
Delete:) :)
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 24 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
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