Thursday, February 2, 2023
तनिक देखो तो यार ! ...
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हैं शहर के सार्वजनिक खुले मैदान में किसी, निर्मित मंच पे मंचासीन एक प्रसिद्ध व्यक्ति । परे सुरक्षा घेरे के,जो है अर्धवृत्ताकार परिधि, हैं ...
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Thursday, January 5, 2023
श्वेत प्रदर की तरह ...
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(1) आकांक्षी उन्मत्त कई देख अचम्भा लगे हैं हर बार, यूँ ऋषिकेश में गंगा के तीर। निज प्यास बुझाए बेझिझक, कोई उन्मुक्त पीकर गंगा नीर। मोक्ष क...
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Thursday, November 17, 2022
मन की झिझरियों से अक़्सर .. बस यूँ ही ...
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देवनागरी लिपि के वर्णमाला वाले जिस 'स' से कास का सफ़र समाप्त होता है, उसी 'स' से सप्तपर्णी की यात्रा का आरम्भ होता है। संयोगव...
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Thursday, August 25, 2022
दूब उदासियों की .. बस यूँ ही ...
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(१) सोचों की ज़मीन पर धाँगती तुम्हारी हसीन यादों की चंद चहलकदमियाँ .. उगने ही कब देती हैं भला दूब उदासियों की .. गढ़ती रहती हैं वो तो अनवरत स...
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Thursday, August 11, 2022
धुआँ-धुआँ ही सही .. बस यूँ ही ...
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(१) # तिल-तिल कर, तिल्लियों से भरी दियासलाई वाली डिब्बी अनुराग की सील भी जाए गर सीलन से दूरियों की, मन में अपने तब भी रखना सुलगाए पर, धुआँ-...
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Sunday, August 7, 2022
कभी तिमला, तो कभी किलमोड़ा ...
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देखता हूँ .. अक़्सर ... कम वक्त के लिए पहाड़ों पर आने वाले सैलानियों की मानिंद ही कम्बख़्त फलों का भी पहाड़ों के बाज़ारों में लगा रहता है सालों ...
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Wednesday, August 3, 2022
बस मन का ...
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(१) बतियाने वाला स्वयं से अकेले में, कभी अकेला नहीं होता, खिलौने हों अगर कायनात, तो खोने का झमेला नहीं होता .. शायद ... (२) साहिब ! यहाँ...
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