(१) #
तिल-तिल कर,
तिल्लियों से भरी
दियासलाई वाली
डिब्बी अनुराग की
सील भी जाए गर
सीलन से दूरियों की,
मन में अपने तब भी
रखना सुलगाए पर,
धुआँ-धुआँ ही सही ..
एक छोटी-सी
अँगीठी यादों की.. बस यूँ ही ...
कायम रहेगी
तभी तो
तनिक ही सही,
पर रहेगी तब भी
.. शायद ...
आस बाक़ी
सुलगने की
तिल-तिल कर
तिल्लियों से भरी
दियासलाई वाली
डिब्बी अनुराग की .. बस यूँ ही ...
अब दो और बतकहियाँ .. अपने ही 'फेसबुक' के पुराने पन्नों की पुरानी बतकहियों से :-
(२) #
साहिब ! ..
आप सूरज की
सभी किरणें
मुट्ठी में अपनी
समेट लेने की
ललक ओढ़े
जीते हैं .. शायद ...
और .. हम हैं कि
चुटकी भर
नमक की तरह
ओसारे के
बदन भर
धूप में ही
गर्माहट चख लेते हैं .. बस यूँ ही ...
(३) #
साहिब ! ..
आपका अपनी
महफ़िल को
तारों से सजाने का
शौक़ तो यूँ
लाज़िमी है ..
आप चाँद जो ठहरे .. शायद ...
हम तो बस
एक अदना-सा
बंजारा ही तो हैं ..
एक अदद
जुगनू भर से
अपनी शाम
सजा लेते हैं .. बस यूँ ही ...
सुलगाते रहें कभी तो लगेगी आग भी बस यूं ही । सुन्दर।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ..
Delete:) :) 😃😃 वो तो लगनी ही है, आपकी दुआएँ जो हमारे साथ हैं .. शायद ...
सुलगाए बैठा हूँ .. धुआँ-धुआँ ही सही .. बस यूँ ही ...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 अगस्त 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 अगस्त 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
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