Saturday, December 7, 2019
हालात ठीक हैं ...
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1947 की आज़ादी वाली कपसती रात हों या हो फिर 1984 के उन्मादी दहकते दंगे मरते तो हैं लोग .. जलती हैं कई ज़िन्दगियाँ क़ुर्बानी और बलि के चौपाय...
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Thursday, December 5, 2019
" सूरज आग का गोला है। " (लघुकथा).
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हमारे भारतीय समाज में परिवार की आदर्श पूर्णता वाले मापदण्ड यानि दो बच्चें - हम दो , हमारे दो - और ऐसे में अगर दोनों में एक तथाकथित मोक्षदात...
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Monday, December 2, 2019
मलिन मन के ...
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बस कुछ माह भर ही .. साल भर में मानो हो किसी मौसम विशेष में जैसे कोयल की कूक बसंत में या मेढकों की टर्रटर्र बरसात में वैसे ही जाड़े की आह...
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Saturday, November 30, 2019
शहर सारा ख़ामोश क्यों है ?
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अक़्सर देखता हूँ शहर में हमारे "लगन" वाली रातों के .. प्रायः हर बारात में आतिशबाजियों के साथ-साथ में उड़ती हैं धज्जियाँ चार-चार ...
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Friday, November 29, 2019
अम्मा !...
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अम्मा ! अँजुरी में तौल-तौल डालती हो जब तुम आटे में पानी उचित स्रष्टा कुम्हार ने मानो हो जैसे सानी मिट्टी संतुलित तब-तब तुम तो कुशल कुम...
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Thursday, November 28, 2019
शहीद-स्मारक
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तुम्हारे सीनों को जब फिरंगियों की बेधती निर्दयी गोलियाँ बना गई होगी बेजान लाशें तुम्हें .. बेअसर रही होगी तब भी भले ही मन्दिरों की ...
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Monday, November 25, 2019
एक विधवा पनपती है ... (आलेख).
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एक ऐतिहासिक क़ब्रिस्तान के बहाने ... जीत का ज़श्न हो कहीं या हार का मातम कहीं .. कभी भी अपनों की हो या दुश्मनों की लाश तो लाश होती है ह...
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