अक़्सर देखता हूँ शहर में हमारे
"लगन" वाली रातों के .. प्रायः हर बारात में
आतिशबाजियों के साथ-साथ में
उड़ती हैं धज्जियाँ चार-चार क़ानूनों की कैसे
एक ही साथ समक्ष अपने सभ्य समाज के ...
फिर भी बुद्धिजीवी शहर सारा ख़ामोश क्यों है ?
"एक असभ्य कुतर्की" बारहा ये पूछता है ...
उम्र भर की कमाई लुटाता कहीं मार कर मन
कुछ करते मन से भी दो नम्बरी कमा कर धन
पर कन्या का पिता फिर भी करता करबद्ध नमन
और रोता है "दहेज़ निषेध अधिनियम,1961"
कहीं बंद क़ानूनों की किताबों में सुबक कर
फिर भी बुद्धिजीवी शहर सारा ख़ामोश क्यों है ?
"एक असभ्य कुतर्की" बारहा ये पूछता है ...
भौंडी नागिन नाच .. भौंडे ऑर्केस्ट्रा के गाने
"डेसीबेल" से बेख़बर लाउडस्पीकर .. बैंड-बाजे
जिस राह से गुजरते करते शोर-शराबे
आग .. धुएँ .. शोर .. बिखेरते जलते पटाखे
संग-संग "ध्वनि प्रदूषण नियम, 2000" और
"वायु अधिनियम, 1981" को सरेआम जलाते
फिर भी बुद्धिजीवी शहर सारा ख़ामोश क्यों है ?
"एक असभ्य कुतर्की" बारहा ये पूछता है ...
टूटता है क़ानून चौथा जब टूटती हैं खाली
बोतलें शहर "पटना"में हमारे जो है
राजधानी भी राज्य बिहार की
कहते हैं लोग कि शायद है लागू यहाँ
"बिहार शराबबंदी क़ानून,2016" अभी भी
दिख जाते हैं लड़खड़ाते बाराती फिर भी
फिर भी बुद्धिजीवी शहर सारा ख़ामोश क्यों है ?
"एक असभ्य कुतर्की" बारहा ये पूछता है ...
परम्पराएं हैं शायद सदियों से बनाई पुरखों की
कहते हैं सुसभ्य, सुसंस्कारी, अधिकारी भी सारे
भईया! इसको तो कर्ज़ लेकर भी निभानी पड़ेगी
होते ही हैं सभी बुद्धिजीवी भी हर बार शामिल
क़ीमती लिबासों में बन कर इनमें बाराती
टूटते क़ानूनों के साथ है सभ्यता बेबस कसमसाती
फिर भी बुद्धिजीवी शहर सारा ख़ामोश क्यों है ?
"एक असभ्य कुतर्की" बारहा ये पूछता है ...
"लगन" वाली रातों के .. प्रायः हर बारात में
आतिशबाजियों के साथ-साथ में
उड़ती हैं धज्जियाँ चार-चार क़ानूनों की कैसे
एक ही साथ समक्ष अपने सभ्य समाज के ...
फिर भी बुद्धिजीवी शहर सारा ख़ामोश क्यों है ?
"एक असभ्य कुतर्की" बारहा ये पूछता है ...
उम्र भर की कमाई लुटाता कहीं मार कर मन
कुछ करते मन से भी दो नम्बरी कमा कर धन
पर कन्या का पिता फिर भी करता करबद्ध नमन
और रोता है "दहेज़ निषेध अधिनियम,1961"
कहीं बंद क़ानूनों की किताबों में सुबक कर
फिर भी बुद्धिजीवी शहर सारा ख़ामोश क्यों है ?
"एक असभ्य कुतर्की" बारहा ये पूछता है ...
भौंडी नागिन नाच .. भौंडे ऑर्केस्ट्रा के गाने
"डेसीबेल" से बेख़बर लाउडस्पीकर .. बैंड-बाजे
जिस राह से गुजरते करते शोर-शराबे
आग .. धुएँ .. शोर .. बिखेरते जलते पटाखे
संग-संग "ध्वनि प्रदूषण नियम, 2000" और
"वायु अधिनियम, 1981" को सरेआम जलाते
फिर भी बुद्धिजीवी शहर सारा ख़ामोश क्यों है ?
"एक असभ्य कुतर्की" बारहा ये पूछता है ...
टूटता है क़ानून चौथा जब टूटती हैं खाली
बोतलें शहर "पटना"में हमारे जो है
राजधानी भी राज्य बिहार की
कहते हैं लोग कि शायद है लागू यहाँ
"बिहार शराबबंदी क़ानून,2016" अभी भी
दिख जाते हैं लड़खड़ाते बाराती फिर भी
फिर भी बुद्धिजीवी शहर सारा ख़ामोश क्यों है ?
"एक असभ्य कुतर्की" बारहा ये पूछता है ...
परम्पराएं हैं शायद सदियों से बनाई पुरखों की
कहते हैं सुसभ्य, सुसंस्कारी, अधिकारी भी सारे
भईया! इसको तो कर्ज़ लेकर भी निभानी पड़ेगी
होते ही हैं सभी बुद्धिजीवी भी हर बार शामिल
क़ीमती लिबासों में बन कर इनमें बाराती
टूटते क़ानूनों के साथ है सभ्यता बेबस कसमसाती
फिर भी बुद्धिजीवी शहर सारा ख़ामोश क्यों है ?
"एक असभ्य कुतर्की" बारहा ये पूछता है ...
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,
हार्दिक आभार आपका मेरी रचना को "पांच लिंकों का आनंद" जैसे मंच पर साझा करने के लिए...
Deleteवाह!!बहुत खूब!सुबोध जी ःः सही कहा आपने परंपरा निभाने के नाम पर अनाप -शनाप खर्च करते है लोग ,न हो तो कर्ज लेते है , पर दिखावा तो करना ही होता है और दिन ब दिन ये दिखावा बढता ही जा रहा है ।कि
ReplyDeleteकाश! इन कुरीतियों को भी धारा-370 की तरह हटा पाते हमसभी मिलकर .. क़ानून तो कई हैं , पर केवल किताबों में ..हमे ऐसी शादियों या बारात का बहिष्कार करना चाहिए ...
Deleteबहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteआपका आभार अनुराधा जी ! ...
Deleteअक़्सर देखता हूँ शहर में हमारे
ReplyDelete"लगन" वाली रातों के .. प्रायः हर बारात में
आतिशबाजियों के साथ-साथ में
उड़ती हैं धज्जियाँ चार-चार क़ानूनों की कैसे
सही कहा आपने ,ख़ुशी के नाम पर भी वातावरण में जहर घोला जाता हर कानून को ताक पर रख देते हैं ,सार्थक सृजन ,सादर नमन
आपको भी नमन ! काश ! हम इन रचनाओं से आगे या परे जाकर अपने आस-पास की ऐसी शादियों या बारात का बहिष्कार करना शुरू कर पाते ...
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteएक रात के जश्न के लिए खुशी -खुशी जीवन भर की कमाई लुटाने और लुटवाने वाले लोगों की कोई कमी नहीं है।कथित बौद्धिक सज्जनों की चुप्पी सदैव इन कुप्रथाओं का पोषण करती दिखाई देती है।बहुत-बहुत विचारणीय रचना के लिए हार्दिक बधाई 🙏
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका .. हम अगर ऐसी शादियों में शरीक़ होना भी बन्द कर दें तो .. इनके मनोबल टूटे ना टूटे, ये आडम्बर भरे रिवाज़ छूटे ना छूटे, कुछ ख़र्चे जरूर कम हो जायेंगे और एक सांकेतिक विरोध भी अप्रत्यक्ष रूप से हो जाएगा .. शायद ...
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