बंजारा बस्ती के बाशिंदे
Friday, September 20, 2019

चन्द पंक्तियाँ - (१७) - "चहलकदमियाँ"- बस यूँ ही ...

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(१):- बस रात भर मोहताज़ है दरबे का ये फ़ाख़्ता वर्ना दिन में बारहा अनगिनत मुंडेरों और छतों पर चहलकदमियाँ करने से कौन रोक पाता हैं ...
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Thursday, September 19, 2019

मन के मेरे 'स्पेक्ट्रम' के

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जानती हूँ मैं तुमको स्वयं से भी ज्यादा अब भले ही तुम मानो या ना मानो पर मैं तो मानती हूँ तुम जानो या ना जानो पर मैं तो ये जानती हूँ क...
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Wednesday, September 18, 2019

चन्द पंक्तियाँ - (16) - "मादा जुगनूओं के" - बस यूँ ही ...

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(1)*** यूँ तो सुना है ... क़ुदरत की एक नाइंसाफी कि ... मादा जुगनूओं के पंख नहीं होते ये रेंगतीं हैं बस उड़ नहीं सकती नर जुगनूओं की ...
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Tuesday, September 17, 2019

नायाब छेनी-हथौड़ी

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सुबह-सवेरे आज सोचा नहा-धोकर 'लाइफबॉय' से कुछ नर-मुंड माल-सी फूलों की माला ले प्रभु विश्वकर्मा  (?) आपकी मूर्तियों पर चढ़ाऊँ और अप...
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चन्द पंक्तियाँ - (१५) - "मौन की मिट्टी" - बस यूँ ही ...

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@(१) यूँ तो पता है मुझे ... तुम्हें पसंद है हरसिंगार बहुत पर हर शाम बैठते हैं हम-तुम झुरमुटों के पास बोगनविलिया के क्योंकि ये बे...
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Saturday, September 14, 2019

"श्श्श्श् ....." अब ख़ामोश हो जाता हूँ ... वर्ना ...

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ख़ामोश कर ही दिया जाता है बार-बार चौक-चौराहों पर मिल समझदारों के साथ "हल्ला बोल" का सूत्रधार पर ख़ामोशी भी चुप कहाँ रहती है भला ...
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Friday, September 13, 2019

'वेदर' हो 'क्लाउडी' और ...

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'वेदर' हो 'क्लाउडी' और ... सीताराम चच्चा का 'डाइनिंग टेबल' 'डिनर' के लिए गर्मा-गर्म लिट्टी, चोखा और घी से...
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Subodh Sinha
आम नागरिक, एक इंसान बनने की कोशिश
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