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हरसिंगार
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Monday, November 29, 2021
एक पोटली .. बस यूँ ही ...
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चहलक़दमियों की उंगलियों को थाम , जाना इस शरद पिछवाड़े घर के, उद्यान में भिनसार तुम .. बस यूँ ही ... लाना भर-भर अँजुरी में अपनी, रात भर के ब...
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Wednesday, October 9, 2019
अंतरंग रिश्ते के दो रंग ... ( दो रचनाएँ ).
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(1)@ बनकर गुलमोहर ------------------- सुगन्ध लुटाते मुस्कुराते .. लुभाते बलखाते .. बहुरंग बिखेरे खिलते हैं यहाँ सुमन बहुतेरे नर्म...
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