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Monday, August 16, 2021
जलुआ नहीं जी, जलवे ...
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झेल कर रोज़ाना सालों भर, धौंस अक़्सर पुरुषों की कभी, निकाला करती थीं महिलाएं, शायद .. आज भी कहीं-कहीं, मन की भड़ास, होकर बिंदास, अंदर दबी कुंठा...
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