जला चुके साल-दर-साल, बारम्बार, मुहल्ले-मैदानों में, पुतलों को रावण के, था वो व्यभिचारी।
पर है अब, बारी-बारी से, निर्मम बलात्कारियों व नृशंस हत्यारों को, जबरन ज़िंदा जलाने की बारी।
वर्ना, होंगी आज नहीं तो कल, सुर्ख़ियों में ख़बरों की, माँ, बहन, बेटी या बीवी, हमारी या तुम्हारी।
यूँ तो आज बाज़ारों से राखियाँ बिकेंगी, खरीदी जाएंगी, बाँधी-बंधवाई भी जायेंगी, हर तरफ़ है ख़ास तैयारी।
मुर्दों के ठिकानों को, अक़्सर सजदा करने वाले, पर बुतपरस्ती के कट्टर दुश्मन।
घर नहीं "राहुल आनंद" का, जलाया है उन्होंने गीत- संगीत, नृत्य- साहित्य का चमन।
नालन्दा जैसी धरोहर व विरासत को हमारी, राख करने वाले, बलवाई बख्तियार खिलजी
और लुटेरे चंगेज़ का कॉकटेल बहता रगों में उनकी,भाता ही नहीं उन्हें दुनिया का अमन।
समसामयिक विचारणीय अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २० अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी ! .. सुप्रभातम् सह सादर नमन संग आभार आपका ...
Deleteसटीक
ReplyDeleteजी ! .. सादर नमन संग आभार आपका ...
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी ! .. सादर नमन संग आभार आपका ...
Deleteविचारणीय अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजी ! .. सादर नमन संग आभार आपका ...
Deleteसुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ...
Deleteसच है ''भाता ही नहीं उन्हें दुनिया का अमन''
ReplyDeleteमार्मिक रचना।
जी ! .. नमन संग आभार आपका ...
Deleteबहुत कुछ किया है कुटिल षडयंत्र कारियों ने नालन्दा जलाया, विरासत को मिटाया! चंगेज़ के वंशज कहर ढाते रहेंगे! उसके हौन्सले बुलन्द हैं! काश ये असीम ऊर्जा किसी मानवतावादी प्रयास में काम आती! 🙏😞
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ... 🙏 इसी "काश ! .. " की फ़ाँस में ही तो हम सभी की साँसों को डाला है, डाला था और धरती के रहने तक इन आततायियों की नस्लें डालती रहेंगी .. शायद ...
Deleteमुझे लगता है कि सही शब्द छड्ड यार होना चाहिए सुबोध जी। क्योकि पंजाबी में छड्ड यार ही कहाजाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है छोड़ो यार! 🙏
ReplyDeleteजी ! .. शायद ... पर ये "छड" शायद पँजाबी भाषा का हिंदीकरण हो सकता है, क्योंकि .. जैसे .. हम जिसे हिंदी में प्रायः "ना" कहते हैं, पर हरियाणवी लोग "णा" बोल जाते हैं .. शायद ...
Deleteमार्मिक।
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ...
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