आरोही या अवरोही बंधे,
तल्लों वाले कदानुसार
ऊँचे-नीचे मकानों से,
'इंटरनेट' या 'डिश केबल' के
मोटे-पतले आबनूसी तारें
बरास्ते बिजली के खम्भों के ;
हों मानो शिव मन्दिर के कँगूरे से
पार्वती मन्दिर के कँगूरे तक,
अवरोह लाल रज्जु तने हुए
"गठजोड़वा अनुष्ठान" वाले,
प्राँगण में "वैद्यनाथ मन्दिर" के .. शायद ...
वशीभूत हो गुरुत्वाकर्षणिय ऊर्जा के ...
उन्हीं तारों पर 'इंटरनेट'
या 'डिश केबल' के,
कभी तड़के मुँह अँधेरे,
कभी भरी दुपहरी में,
तो कभी शाम के धुँधलके में भी,
पटरियों पर गुजरती किसी रेल-सी,
अक़्सर गुजरती हुई सावन में
बारिश की बूँदों की रेलगाड़ी
निहारता हूँ अपलक जब-तब
अवकाश के आलिंगन में .. बस यूँ ही ...
बूँदों की रेलगाड़ी
बूँदों की रेलगाड़ी
वाह! बहुत खूबसूरत सृजन । बूँदों की रेलगाडी दिखाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteवाह
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबहुत खूबसूरत👌👌
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ...
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