(1)
तुम ना सही,
तेरी यादें ही सही,
मन के आले पर संभाले,
रखा हूँ आज भी तुम्हें सहेज करके .. बस यूँ ही ...
वर्ना यूँ तो
पूजते हैं जिसे सभी,
अक़्सर उन्हें भी ताखे से
फ़ुटपाथों पे छोड़ने में नहीं गुरेज़ करते .. बस यूँ ही ...
(2)
गाते हैं सभी
यूँ तो यहाँ पर
"ये हसीं वादियाँ ..
ये खुला आसमां"~~~,
पर जानम बिन तेरे
है मेरे लिए तो ये
जैसे कोई मसान .. बस यूँ ही ...
सुलगते
भीमसेनी कपूर-सी
तुम्हारी
सोंधी साँसों के
बिन है जानम
सब ये यहाँ
सुनसान, वीरान ..बस यूँ ही ...
नमस्कार सर, बहुत खूबसूरत रचना , भीमसेनी कपूर सी, 😊😊
ReplyDeleteजी ! नमन संग शुभाशीष आपका ...
Deleteये बस यूँ ही गज़ब ही लिखा गया है । बहुत खूब ।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Delete( लगभग तीन माह पूर्व नया 'मोबाइल' बदलने के पश्चात मेरे 'ब्लॉग' की 'सेटिंग्स' गडमड हो गयी है, जिससे हम अपनी 'आई डी' द्वारा प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहे थे / हैं .. अन्ततः यूँ ही दे पा रहे हैं क्षमाप्रार्थी ...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 19 जुलाई 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteसुबोध भाई, आप बस यू ही भी गजब का लिख लेते हो! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबस यूं ही भी कभी कभी दिल को खुश कर देता है ।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteलाज़बाब.....
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteबहुत बढ़िया सुबोध जी।लोग मूर्ति रूप भगवान को त्याग देते हैं क्योकि नये ईश्वर आकर उनकी जगह ले लेते हैं पर यादे स्थायी रूप से दीप बनकर मन के आले को आलौकित करती हैं।मन के साथी संग वीराना भी उपवन सा तो बिन उनके सब मसान।सरल शब्दों में ढ़ली गहन हृदयस्पर्शी आत्मानुभूति।🙏
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
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