जितनी ही ज्यादा स्वयं को 'वर्किंग लेडी' कह के जब-जब
आपने अपनी गर्दन है अकड़ाई ;
उतनी ही ज्यादा उन्होंने ख़ुद को
'हाउस वाइफ' बतलाते हुए तब-तब
अपनी गर्दन है झुकाई .. शायद ...
साहिबान !! तनिक देखिए तो ..
भला अब किसने वहाँ पे तख़्ती
'मेन एट वर्क' की है लगाई ?
पर उनकी डगमगाती गर्दन पे अड़े
सिर पर धरे बोझ ईंटों के देख के भी
लज्जा जिन्हें आयी ना आयी .. शायद ...
【 हमारे तथाकथित सभ्य और बुद्धिजीवी समाज की विडंबना एक तरफ ये है, कि एक दिन के चंद तय घंटों के लिए नौकरीशुदा महिलाएँ अपनी गर्दनें अकड़ाती हैं और चौबीसों घंटे स्वयं को समर्पित की हुई औरतें झेपतीं हैं अक़्सर ये कहते हुए कि "कुछ नहीं करती हम .. हम बस 'सिम्पली हाउस वाइफ' हैं जी" .. और ... दूसरी ओर मेरी सोच से .. ये 'मेन एट वर्क' वाली तख्तियाँ भी शायद पुरुष प्रधान सोच की उपज की ही द्योतक हैं , जब कि 'पीपल एट वर्क' की तख़्ती लगानी ही तर्कसंगत होनी चाहिए .. शायद .. बस यूँ ही ... 】
सुबोध भाई, सब कुछ सोच का ही तो फर्क है। कोई 24 घंटे काम करने क्व बाद भी कुछ नहीं करता और कोई चंद घण्टे काम करते वर्किंग कहलाता है।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ... सही कह/सोच रहीं हैं आप ज्योति बहन ..
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