चूल्हा और
चकलाघर में
अंतर नहीं ज्यादा
बस फ़र्क इतना कि
एक होता है ईंधन से
रोशन और दूसरा
हमारे जले सपने
और जलते तन से
पर दोनों ही जलते हैं
किसी की आग को
बुझाने के लिए
एक जलता है किसी के
पेट की आग तो दूसरा
पेट के नीचे की आग
बुझाने के लिए साहिब !
अक़्सर कई घरों में
चहारदीवारी के भीतर
अनुशासन के साथ
बिना शोर-शराबे के भी
जलते हैं कई सपने
सुलगते हैं कई बदन
मेरी ही तरह क्योंकि एक
हम ही नहीं वेश्याएँ केवल
ब्याहताएँ भी तो कभी-कहीं
सुलगा करती हैं साहिब !
अंतर बस इतना कि
हम जलती हैं
दो शहरों या गाँवों को
जोड़ती सड़कों के
किनारे किसी ढाबे में
जलने वाले चूल्हे की तरह
अनवरत दिन-रात
जलती-सुलगती
और वो किसी
संभ्रांत परिवार की
रसोईघर में जलने वाले
दिनचर्या के अनुसार
नियत समय या समय-समय पर
पर जलती दोनों ही हैं
हम वेश्याएँ और ब्याहताएँ भी
ठीक किसी जलते-सुलगते
चूल्हे की तरह ही तो साहिब !
चकलाघर में
अंतर नहीं ज्यादा
बस फ़र्क इतना कि
एक होता है ईंधन से
रोशन और दूसरा
हमारे जले सपने
और जलते तन से
पर दोनों ही जलते हैं
किसी की आग को
बुझाने के लिए
एक जलता है किसी के
पेट की आग तो दूसरा
पेट के नीचे की आग
बुझाने के लिए साहिब !
अक़्सर कई घरों में
चहारदीवारी के भीतर
अनुशासन के साथ
बिना शोर-शराबे के भी
जलते हैं कई सपने
सुलगते हैं कई बदन
मेरी ही तरह क्योंकि एक
हम ही नहीं वेश्याएँ केवल
ब्याहताएँ भी तो कभी-कहीं
सुलगा करती हैं साहिब !
अंतर बस इतना कि
हम जलती हैं
दो शहरों या गाँवों को
जोड़ती सड़कों के
किनारे किसी ढाबे में
जलने वाले चूल्हे की तरह
अनवरत दिन-रात
जलती-सुलगती
और वो किसी
संभ्रांत परिवार की
रसोईघर में जलने वाले
दिनचर्या के अनुसार
नियत समय या समय-समय पर
पर जलती दोनों ही हैं
हम वेश्याएँ और ब्याहताएँ भी
ठीक किसी जलते-सुलगते
चूल्हे की तरह ही तो साहिब !
प्रतीक के माध्यम से रची गई सुन्दर रचना
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२७ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी ! आभार आपका और आपके मंच का ...
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (27-04-2020) को 'अमलतास-पीले फूलों के गजरे' (चर्चा अंक-3683) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
जी ! आभार आपका और चर्चा-मंच का ...
Deleteसुंदर रचना ।बेहतरीन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआपका आभार रचना/विचार को अनुगृहीत करने के लिए ...
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteआपका आभार रचना/विचार तक आने के लिए ...बस समाज की बदसूरती - बस यूँ ही ...
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteजी ! आपका सनातनी आभार गुरु जी ☺
Deleteभावपूर्ण रचना सुबोध जी ।
ReplyDeleteजी! आभार आपका ...
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteसमाज के वीभत्स और कटु ढके लिपटे सत्य को ,बड़े दुस्साहस से ,रचना के माध्यम से भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी है आपने।कहीं न कहीं ये सत्य अनगिन मुस्कानों और नकली हँसी के नीचे ढके लिपटे रह जाते हैं!
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका .. बतकही की मूल भावनाओं को उजागर करने के लिए .. बस यूँ ही ...
ReplyDeleteबहुत ही घृणित कटु सत्य...फर्क नहीं दोनों में ज्यादा..... बहुत ही मर्मस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका .. कटुता को सत्य मानने के लिए .. बस यूँ ही ...
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