Saturday, April 25, 2020

किनारा


(1)@ :-

जानाँ !
निर्बाध बहती जाना तुम बन कर उच्छृंखल नदी की बहती धारा
ताउम्र निगहबान बनेगी बाँहें मेरी, हो जैसे नदी का दोनों किनारा ।


(2)@ :-

हो ही जाती होगी कभी-कभी भूल
नभ के उस तथाकथित विधाता से
अक़्सर होने वाली हम इंसानों सी।

वैसे भले ही पूर्व जन्म के पाप-पुण्य
और कर्म-कमाई से इसे ब्राह्मणों के
पुरखों ने हो ज़बरन जोड़ कर रखी।

कुछ अंगों की ही तो है बात यहाँ
जिसे जीव-विज्ञान सदा है मानता
अंतःस्रावी ग्रंथि की मामूली कमी।

संज्ञा तो "हिजड़ा" का दे दिया मगर
करता है क्यों उन से समाज किनारा
भेद आज तक मुझे समझ नहीं आयी।


(3)@ :-

नफ़रत "जातिवाचक संज्ञा" से तुम्हारे
और समाज से दूर बसी बस्ती तुम्हारी
हिक़ारत भरी नजरों से देखते तुम्हें सब
पर गुनाह करते सारे ये मर्द व्यभिचारी।

तुम भी तो किसी की बहन होगी
या लाडली बेटी किसी की कुवाँरी
तथाकथित कोठे तक तेरा आना
मर्ज़ी थी या कोई मजबूरी तुम्हारी।



किनारा करने वाला समाज अगर
पूछ लेता हाल एक बार तुम्हारी
देख पाता समाज अपना ही चेहरा
तब अपने ही पाप की मोटी गठरी।








14 comments:

  1. निर्बाध बहती जाना तुम बन कर उच्छृंखल नदी की बहती धारा
    ताउम्र निगहबान बनेगी बाँहें मेरी, हो जैसे नदी का दोनों किनारा । वाह! बहते पानी को आग़ोश में लेने का दुस्साहस करती बाँहें! बह जाएगा पानी और शेष रह जाएँगी बस 'आहें'!
    बहुत सुंदर रचना। समाज की विद्रूपताओं को उघेरती हुई।

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    1. जी ! आभार आपका .. आप रचना/विचार तक आए ... हाँ, सही कहा आपने .. इसे दुस्साहस ही कहना चाहिए क्योंकि कई दफ़ा तो बहती धारा किनारों को काट कर बहा ले जाती हैं अपने साथ .. कई बार धारा की दिशा भी बदलती रहती है ...
      विद्रूपताएं बुद्धिजीवियों की तादाद में और भी मुँह चिढ़ाती महसूस होती हैं .. अक़्सर ...

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  2. बहुत खूबसूरत रचनायें

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    1. जी ! आभार आपका रचना/विचार तक आने के लिए ...

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  3. चरैवेति का सन्देश देतीं सुन्दर रचनाएँ

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-04-2020) को     शब्द-सृजन-18 'किनारा' (चर्चा अंक-3683)    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. जी ! आभार आपका चर्चा-मंच पर साझा हेतु ...

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  5. बहुत सुंदर पंक्तियाँ।

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    1. जी ! आभार आपका रचना/विचार तक आने के लिए ...

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  6. सुन्दर प्रस्तुति

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  7. 'किनारा करना' मुहावरा आपकी अभिव्यक्ति के माध्यम से मुखर हो उठा है। बहुत ख़ूब है आपका यथार्थवादी चिंतन जो समाज के अछूते विषयों से हमें सार्थक रचनात्मक हस्तक्षेप के साथ सोचने को विवश करता है। अंधविश्वासों और रूढ़िवादिता पर करारा प्रहार करती है आपकी अभिव्यक्ति।
    बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    लिखते रहिए।

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    1. उपर्युक्त रचनाओं/विचारों की आप के मन से की गई विश्लेषणात्मक समीक्षा के लिए आभार आपका ... शुक्रिया ...

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