Sunday, January 19, 2020

भाषा "स्पर्श" की ...

सिन्दूर मिले सफेद दूध-सी रंगत लिए  चेहरे
चाहिए तुम्हें जिन पर  मद भरी बादामी आंखें
सूतवा नाक .. हो तराशी हुई भौं ऊपर जिनके
कोमल रसीले होठ हों गुलाब की पंखुड़ी जैसे
परिभाषा सुन्दरता की तुम सब समझो साहिब
जन्मजात सूर हम केवल भाषा "स्पर्श" की जाने
अंधा बांटे भी तो भला जग में क्योंकर बांटे
अंतर मापदण्ड के सुन्दरता वाले सारे के सारे ...

हैं भगवा में दिखते सनातनी हिन्दू तुम्हें
बुत दिखता है, बुतपरस्ती भी, तभी तो
मोमिन और किसी को काफ़िर हो कहते
भेद कर इमारतों में मंदिर-मस्जिद हो कहते
रंगों का भेद तो तुम सब जानो साहिब !
हम तो बस केवल "नमी" कोहरे की जाने
अंधा बांटे भी तो भला जग में क्योंकर बांटे
रंगों के अंतर भला इंद्रधनुष के सारे के सारे ...



8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 19 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. नमन आपको और आभार आपका ...

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  2. जन्मजात सूर हम केवल भाषा "स्पर्श" की जाने
    अंधा बांटे भी तो भला जग में क्योंकर बांटे

    सुन्दर अभिलेख, सुन्दर संदेश...
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय सुबोध जी।

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    1. नमस्कार पुरुषोत्तम जी ! आभार आपका ...

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २० जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. सुंदर सृजन ,सादर नमन

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    1. जी ! आभार आपका .. नमन आपको भी ...

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