Sunday, November 3, 2019

मन की कलाई पर ... ( दो रचनाएँ ).

१)*

जानिब ! ..
तुम मानो ..
ना मानो पर .. मेरी
मन की कलाई पर
अनवरत .. शाश्वत ..
लिपटी हुई हो तुम
मानो .. मणिबंध रेखा ...

तुम .. जानो ..
ना जानो पर ..
लिपटा रहता है
पल-पल .. हर पल ..
इर्द-गिर्द उस रेखा के
मेरी फ़िक्रमंदी का
विश्वस्त मौली सूता ...

२)*

मेरी जानाँ !
अब तो अक़्सर ...
Sphygmomanometer का
Cuff याद कराता है
मदहोशी में कस कर
मुझसे चिपटना तुम्हारा ...

और ...
Stethoscope का
Chestpiece तुम्हारी
बढ़ी हुई रूमानी
'धुकधुकी' को क़रीब से
हर बार मेरा सुन पाना ...


10 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-11-2019) को   "रंज-ओ-ग़म अपना सुनाओगे कहाँ तक"  (चर्चा अंक- 3510)  पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    दीपावली के पंच पर्वों की शृंखला में गोवर्धनपूजा की
    हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।  
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. हार्दिक आभार आपका शास्त्री जी ...

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 04 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हर बार आपको हार्दिक आभार ...

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  3. बिल्कुल अलग सी दोनों रचनाएं ....सादर

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  4. भीड़ से हटकर एक भिन्न रचना। बहुत बढ़िया।

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    1. शुक्रिया भाई ... वैसे भीड़ से हट कर सोचना गुनाह माना जाता है ... अक़्सर ...

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  5. आपकी रचनाओं के बिंब खींचते हैं।
    मन छूती बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  6. मन में गहराई तक उतरती भावप्रवण पंक्तियाँ !
    Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर चाय के बहाने :)

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