बंजारा बस्ती के बाशिंदे
Friday, November 1, 2019

अनगढ़ा "अतुकान्त"

›
(1)@ सजे परिधान बिंदी .. लाली .. पायल .. चूड़ियाँ .. इन सब का रहता ध्यान बस ... सजन के आने तक ... पर रहता भला होश किसे इन सबका अ...
8 comments:
Thursday, October 31, 2019

सोना के सूप में ... (लघुकथा/कहानी).

›
अभी-अभी घर आकर थाना के बड़ा बाबू अपनी धर्मपत्नी - 'टोनुआ की मम्मी' के हाथों की बनी चाय की चुस्की का आनन्द ले रहे हैं। अक़्सर हम स्था...
12 comments:
Tuesday, October 29, 2019

पाई(π)-सा ...

›
180° कोण पर  अनवरत फैली   बेताब तुम्हारी    बाँहों का व्यास     मुझे अंकवारी      भरने की लिए       एक अनबुझी प्यास ... और ...  36...
6 comments:
Friday, October 25, 2019

आप और आपका उल्लू ... - चन्द पंक्तियाँ - (२०) - बस यूँ ही ...

›
(१)# घर-घर चमक रहा सज रहा .. दमक रहा .. पर ... शहर-गाँव की गलियों के हर नुक्कड़ पर बढ़ गया है इन दिनों कूड़े-कचरों का ढेर और .. मुहल्...
7 comments:
Sunday, October 20, 2019

होठों के 'क्रेटर' से ...

›
मन के मेरे सूक्ष्म रंध्रों ... कुछ दरके दरारों ... बना जिनसे मनःस्थली भावशून्य रिक्त .. कुछ सगे-सम्बन्धों से कोई कोना तिक्त जहाँ-जहाँ ज...
16 comments:
Friday, October 18, 2019

मन को जला कर ...

›
माना कि ... बिना दिवाली ही जलाई थी कई मोमबत्तियाँ भरी दुपहरी में भीड़ ने तुम्हारी  और कुछ ने ढलती शाम की गोधूली बेला में शहर के उस मशहूर...
24 comments:
Thursday, October 17, 2019

यार चाँद ! ...

›
यार चाँद ! .. बतलाओ ना जरा !... जो है मेरे मन के करीब अपनी प्रियतमा होकर करीब भी मन के जिसके जिसे अक़्सर मैं मना नहीं पाता  और बतलाओ ना ...
14 comments:
‹
›
Home
View web version

About Me

My photo
Subodh Sinha
आम नागरिक, एक इंसान बनने की कोशिश
View my complete profile
Powered by Blogger.