बंजारा बस्ती के बाशिंदे
Friday, August 9, 2019

किसी दरवेश के दरगाह से

›
मेरी अतुकान्त कविताओं की बेतरतीब पंक्तियों में हर बार तुम आ ही जाती हो अपने बिखरे बेतरतीब महमहाते बालों की तरह और तुम्हारी अतुकान्त...
12 comments:
Tuesday, August 6, 2019

चन्द पंक्तियाँ - (७) - बस यूँ ही ....

›
(1)# माना कि ... पता नहीं मुझे पता तुम्हारा, पर सुगन्धों को भला कब चाहिए साँसों का पता बोलो ना जरा ... चलो बन्द कर भी दो अपनी दो आँ...
16 comments:

काश ! "अंधविश्वास" भी हो पाता "धारा-370" - दो संस्मरण.

›
दैनिक हिन्दी समाचार-पत्र 'हिन्दुस्तान' के आज के साप्ताहिक संलग्न 'हिन्दुस्तान पटना लाइव' के मुख्य-पृष्ठ पर नीचे छपे स्तम्भ ...
10 comments:
Saturday, August 3, 2019

मेरे मन की मेंहदी

›
माना मेरे मन की मेंहदी के रोम-रोम ... पोर-पोर ...रेशा-रेशा ... हर ओर-छोर मिटा दूँ तुम्हारी .... च्...च् ..धत् ... शब्द "मिटा दूँ...
20 comments:
Friday, August 2, 2019

छितराया- बिखरा निवाला

›
अक्षत् ... हाँ ... पता है .. ये परिचय का मोहताज़ नहीं जो होता तो है आम अरवा चावल पर तथाकथित श्रद्धा-संस्कृति का ओढ़े घूँघट बना दिया जाता ...
12 comments:
Sunday, July 28, 2019

काले घोड़े की नाल

›
" जमूरे ! तू आज कौन सी पते की बात है बतलाने वाला ...   जिसे नहीं जानता ये मदारीवाला " " हाँ .. उस्ताद !" ... एक हवेल...
22 comments:

मज़दूर

›
गर्मी में तपती दुपहरी के चिलचिलाते तीखे धूप से कारिआए हुए तन के बर्त्तन में कभी औंटते हो अपना खून और बनाते हो समृद्धि की गाढ़ी-गाढ़ी राब...
10 comments:
‹
›
Home
View web version

About Me

My photo
Subodh Sinha
आम नागरिक, एक इंसान बनने की कोशिश
View my complete profile
Powered by Blogger.