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क़ब्रिस्तान
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Wednesday, May 13, 2020
महज़ एक इंसान ...
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मैं हूँ तो इंसान ही। मेरे पास भी है ही ना एक मानव मन। वह भी वैसा इंसान ( कम से कम मेरा मानना है ) जिसने दिखावे के लिए कभी संजीदगी के पैरहन ...
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Monday, November 25, 2019
एक विधवा पनपती है ... (आलेख).
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एक ऐतिहासिक क़ब्रिस्तान के बहाने ... जीत का ज़श्न हो कहीं या हार का मातम कहीं .. कभी भी अपनों की हो या दुश्मनों की लाश तो लाश होती है ह...
2 comments:
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