Showing posts with label
माँ
.
Show all posts
Showing posts with label
माँ
.
Show all posts
Friday, May 8, 2020
बेचारी भटकती है बारहा ...
›
सारा दिन संजीदा लाख रहे मोहतरमा संजीदगी के पैरहन में मीन-सी ख़्वाहिशें मन की, शाम के साये में मचलती है बारहा निगहबानी परिंदे की है मि...
8 comments:
Sunday, December 22, 2019
भला कौन बतलाए ...
›
कर पाना अन्तर हो जाता है मुश्किल न्याय और अन्याय में रत्ती भर भी हो जब बात किसी की स्वार्थसिद्धि की या फिर रचनी हो कड़ी कोई नई सृष्टि की...
8 comments:
›
Home
View web version