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मन-अमूर्त
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Sunday, July 14, 2024
नर्म बुग्याल अकूत ...
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मूँदे अपनी आँखें, मख़मली ग़िलाफ़ में पलकों के, मिलो ना कभी हमदोनों, रहो तुम भी मूक, घंटों .. रहें हम भी मूक .. बस यूँ ही ... तन तानती, लेती ...
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