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धरती
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Sunday, August 30, 2020
एक रात उन्मुक्त कभी ...
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हुआ था जब पहली बार उन्मुक्त गर्भ और गर्भनाल से अपनी अम्मा के, रोया था जार-जार तब भी मैं कमबख़्त। क्षीण होते अपने इस नश्वर शरीर से और होऊँगा ...
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Sunday, December 22, 2019
भला कौन बतलाए ...
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कर पाना अन्तर हो जाता है मुश्किल न्याय और अन्याय में रत्ती भर भी हो जब बात किसी की स्वार्थसिद्धि की या फिर रचनी हो कड़ी कोई नई सृष्टि की...
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Friday, November 29, 2019
अम्मा !...
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अम्मा ! अँजुरी में तौल-तौल डालती हो जब तुम आटे में पानी उचित स्रष्टा कुम्हार ने मानो हो जैसे सानी मिट्टी संतुलित तब-तब तुम तो कुशल कुम...
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