या भीतर कहीं सजावटी सामान की तरह,
संभ्रांत अतिथि कक्षों, आलीशान मॉलों में,
हवाईअड्डे, बार-रेस्टोरेंटों या पाँच सितारा होटलों में
हैं मूर्तियाँ तुम्हारी खड़ी-बैठी ध्यानमुद्राओं में, जिन्हें
देख के सच्ची-मुच्ची .. बहुत ही कष्ट होता है .. बस यूँ ही ...
दुष्प्रभाव से मद्यपान के क्षरित हों या ना हों,
मानव वृक्क-हृदय .. सारे के सारे तन हमारे,
मादकता में मदिरा की भले ही हो या ना हो,
बुद्धि शिथिल व्यसनी जन की, तो भी .. उससे
पहले .. सच्ची-मुच्ची विवेक तो भ्रष्ट होता है, जिन्हें
देख के सच्ची-मुच्ची .. बहुत ही कष्ट होता है .. बस यूँ ही ...
मदिरा है प्रतिष्ठा का प्रतीक इस सभ्य समाज में
बुद्धिजीवियों के बीच, है अनोखी सीख इनकी,
कबाबों .. चिकेन जैसे चखनों में दिखती ही नहीं,
सनी सजीवों की शब्दातीत चीख पीड़ाओं की, पर ..
ऐसे में .. सच्ची-मुच्ची संस्कार तो नष्ट होता है।
देख के सच्ची-मुच्ची .. बहुत ही कष्ट होता है .. बस यूँ ही ...
पीपल तले, शुद्ध प्राणवायु में तुम रमने वाले,
उनकी तो ना सही, पर धुएँ में धूम्रपान के उनके,
घुटते ही होंगे दम तो अवश्य ही तुम्हारे ..
हुँकारों से धर्मों-सम्प्रदायों के, हर्षित हैं वो सारे, पर परे
इससे .. सच्ची-मुच्ची मानव मन त्रस्त होता है।
देख के सच्ची-मुच्ची .. बहुत ही कष्ट होता है .. बस यूँ ही ...
{ महान रचनाकार हरिवंश राय बच्चन जी की कालजयी रचनाओं में से एक - "बुद्ध और नाचघर" को पढ़ने का तो नहीं, परन्तु लगभग सत्तर-अस्सी के दशक वाले वर्षों में एक चमत्कार की तरह अवतरित व प्रचलित उपकरण - टेप रिकॉर्डर और कॉम्पैक्ट कैसेट यानी ऑडियो कैसेट या टेप के सौजन्य से उन्हीं के सुपुत्र अमिताभ बच्चन की आवाज़ में सुनने का मौका अवश्य मिल पाया था। उन्हीं दौर में उपरोक्त उपकरण से ही मन्ना डे जी की मधुर आवाज़ में हरिवंश राय बच्चन जी की ही एक और दर्शन से भरी कालजयी रचना "मधुशाला" को भी सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ था।
तब भी पहली बार एवं तत्पश्चात् बारम्बार सुनने पर उपरोक्त दोनों रचनाओं ने मन पर गहरी छाप छोड़ी थी और आज भी बुद्ध की प्रतिमाओं के अनुचित स्थानों पर अनुचित प्रयोग किए जाने वाले दृश्यों को देखते ही .. संवेदनशील मन व्यथित व विचलित हो जाता है और .. स्वतःस्फूर्त कुछ बतकही फूट ही पड़ती है। }
समाज का एक ऐसा अभिशाप जिसके दंश से अनगिनत जीवन कष्ट भोगने को मजबूर है।
ReplyDeleteसारगर्भित ,संदेशात्मक ,मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी ! .. नमन संग आभार आपका .. हमारी बतकही को "पाँच लिंकों का आनन्द" के मंच पर अपनी प्रस्तुति में स्थान एवं बतकही के लिए विशेष विशेषण प्रदान करने के लिए ...
Deleteबुद्ध आपके कष्ट हरें | सुन्दर सृजन |
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका .. झाँकने हेतु, पर .. हम जैसे लोगों का कष्ट का हरण या निवारण बुद्ध तो नहीं, वरन् " 8 pm वाली प्रजातियाँ " ही स्वसंज्ञान से " 8 pm " को यशोधरा की तरह त्याग के कर सकती हैं और त्यागने की कोई शुभ मुहूर्त भी नहीं होती .. शायद ...🙄🤔
Deleteबहुत सुंदर रचना 🙏
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ...
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