जीवन के बचपन की सुबह हो, जवानी की भरी दुपहरी हो या फिर वयस्कता की ढलती हुई शाम .. जीवन के हर मोड़ पर पनपने वाले सपने .. अलग-अलग मोड़ पर पनपे अलग-अलग रंग-प्रकार के सपने और कुछेक ख़ास तरह के .. ताउम्र एक जैसे ही रहने वाले, परन्तु .. परिस्थितिवश सुषुप्त ज्वालामुखी की तरह सुषुप्तावस्था में कुछ-कुछ सोए, कुछ-कुछ जागे, कुछ उनिंदे-से सपने .. जब कभी भी जीवन के जिस किसी भी मोड़ पर कुलाँचें भरने लगें और यदि वो सपने बड़े हों, तो ऐसे में छोटी-छोटी उपलब्धियाँ मन को गुदगुदा नहीं पाती हैं .. मन में रोमांच पैदा नहीं कर पाती हैं .. शायद ...
ऐसी ही कुछ छोटी-छोटी उपलब्धियाँ देहरादून प्रवास के दौरान जब कभी भी मिली हैं, हम इस 'ब्लॉग' के पन्नों को अपनी आधुनिक 'डायरी' मानते हुए अपनी चंद छोटी-छोटी उपलब्धियाँ इस पर उकेरने के बहाने ही आप सभी से भी साझा कर लेते हैं। मसलन -
प्रसार भारती के अन्तर्गत आकाशवाणी, देहरादून द्वारा प्रसारित 02.01.2023 की "कवि गोष्ठी" में उत्तराखंड के अन्य कवि-कवयित्रियों के साथ हमें हमारी बतकही के रूप में अपनी तीन कविताओं को पढ़ने का मौक़ा मिल पाया था, जिसके लिए हम कार्यक्रम अधिशासी दीपेन्द्र सिंह सिवाच जी का आभारी हैं। उस "कवि गोष्ठी" के अपने हिस्से की आवाज़ की 'रिकॉर्डिंग' हमने बाद में यहाँ आप सभी से साझा भी किया था।
उसके बाद पुनः 21.04.2023 को आकाशवाणी, देहरादून द्वारा ही प्रसारित "कथा सागर" कार्यक्रम के तहत बतकही के रूप में हमें हमारी कहानी - "बस यूँ ही ..." सुनाने का मौका मिला था, जिसकी ध्वनि की भी 'रिकॉर्डिंग' हमने आगे साझा की थी। यह भी कार्यक्रम अधिशासी दीपेन्द्र सिंह सिवाच जी के ही सौजन्य से मिला था।
फिर हमारी मुलाक़ात हुई थी, 27.05.2023 को प्रसार भारती के तहत दूरदर्शन, उत्तराखण्ड से प्रसारित "हिन्दी कवि गोष्ठी" के तहत; जब हमें उत्तराखंड के अन्य कवि-कवयित्रियों के लिए मंच-संचालन के साथ-साथ स्वाभाविक है, कि हमारी बतकही के रूप में अपनी कविताओं को सुनाने का भी सुअवसर मिल पाया था। जिसकी 'यूट्यूब' अभी तक यहाँ साझा नहीं कर पाया, जो अभी आपके समक्ष है .. बस यूँ ही ...
पुनः विगत बार हमलोग मिले थे, देश भर में मनाए जा रहे "हिंदी माह" के तहत 18.09.2023 को आकाशवाणी, देहरादून द्वारा ही प्रसारित एक कार्यक्रम "एक वार्ता" के तहत "अंतरराष्ट्रीय फ़लक में हिंदी" नामक वार्ता के संग। उसकी भी अभिलेखबद्ध ध्वनि हमने यहाँ पर साझा किया था .. बस यूँ ही ...
अब पुनः ध्वनि के माध्यम से हमारी भेंट हो रही है .. 05.05.2024 को रात्रि के 8 बजे प्रसार भारती के ही आकाशवाणी, देहरादून से कार्यक्रम अधिशासी राकेश ढौंडियाल जी के सौजन्य से प्रसारण होने वाले "काव्यांजलि" कार्यक्रम के तहत, जिसमें हमारी एकल बतकही सुन सकेंगे आप .. अगर आपकी इच्छा हुई तो .. बस यूँ ही ...
आप अपने मोबाइल पर Play Store से News On Air नामक App को download कर लीजिए, जिससे आप समस्त भारत के प्रसार भारती से प्रसारित होने वाले कार्यक्रम को सुन सकते हैं।
अब एक नज़र आज की बतकही पर .. जिसे हमने नाम दिया है - "उतनी भी .. भ्रामक नहीं हो तुम ..."
किसी भ्रामक विज्ञापन-सी,
मनलुभावन, मनभावन-सी,
रासायनिक सौन्दर्य प्रसाधन
पुतवायी किसी श्रृंगार केन्द्र से,
लिपटी स्व संज्ञान में
कुछ विशिष्ट लिबासों से,
विशिष्ट आभूषणों से लदी लकदक
कृत्रिम सुगंधों के कारावास में,
आवास में, प्रवास में,
तीज-त्योहारों में, शादी-विवाहों में,
बन के मिसाल, एक प्रज्वलित मशाल-सी
सजधज कर, बनठन कर,
मचलती हुई, मटकती हुई,
कभी अलकों को झटकाती,
कभी लटों को सँवारती,
बनी-ठनी, सजी-सँवरी,
प्रयास करती हो प्रायः ..
ठगे गए उपभोक्ताओं जैसी
अनगिनत अपलक निग़ाहों के
केंद्र बिंदु बनने की, बनती भी हो, बनी रहो .. बस यूँ ही ...
वैसे भी तो ..
उतनी भी .. भ्रामक नहीं हो तुम,
जितने हैं भ्रामक वो विज्ञापन सारे,
ना जाने भला कैसे-कैसे ? ..
लेके आड़ काल्पनिक व रचनात्मक चित्रण के
और अक्षर भी वो आड़ वाले सारे छोटे-छोटे,
लेकिन केसर उस अक्षर से भी बड़े-बड़े,
हैं दिख जाते प्रतिष्ठित लोग छींटते हुए ढेर सारे।
"बोलो जुबां केसरी" के बहाने
केसर व केसरिया रंग भी
हैं पैरों तले मिलकर रौंदते।
एक मोहतरमा देकर हवाला
एक पुराने फ़िल्मी गीत के,
दिखती हैं अक़्सर .. पुरुष जांघिए में ढूँढ़ती
अपना दीवानापन या सुरूर मोहब्बत के।
हद हो जाती है तब, जब "ठंडा" जैसा ..
एक शब्द हिंदी शब्दकोश का जैसे,
मतलब ही अपना है खो देता एक शीतल पेय (?) से।
दिमाग़ी और शारीरिक ताक़तें व ऊर्जा हैं इनमें,
ऐसा दिखलाते-बतलाते हैं मिल कर सारे वो .. शायद ...
किन्तु हमें तो बस्स ! ...
पढ़ना है तुम्हारे अंतस मन को,
जिसमें मैं शायद शेष बचा होऊँ
आज भी या नहीं भी,
पूजन की थाली में
रंचमात्र बचे अवशेष की तरह
जले भीमसेनी कपूर के।
तुम आओ, ना आओ कभी समक्ष मेरे,
परन्तु .. पढ़ना है मुझे एक बार ..
बारम्बार .. केवल और केवल
तुम्हारे चेतन-अवचेतन मन को,
पल-पल, हर पल .. मन में आते-जाते
तमाम तेज विचारों से इतर,
कुछ सुस्त, सुषुप्त पड़ी तुम्हारी भावनाएँ।
ठीक है ? .. ठीक .. ठीक-ठीक ..
किसी भ्रामक विज्ञापन की
लघु मुद्रलिपि वाले अस्वीकरण की तरह
या किसी चलचित्र के किसी कोने की
संवैधानिक चेतावनी की तरह
मन के कोने में तुम्हारे जो कुछ भी दबी हो .. बस यूँ ही ...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 05 मई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ...
Deleteख्याल अच्छा है गालिब
ReplyDeleteजी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार .. पर आपके ख़्यालों (वो भी नुक़्ता वाला साहिब🙄) से तो कमतर ही है .. शायद ...
Deleteवैसे भी अब गोपाल दास 'नीरज' जी के युग में आप अभी भी ग़ालिब चच्चा (ये भी नुक़्ता वाले साहिब😀) के साथ लटके हुए हैं .. आइये ना .. 'नीरज' जी को याद करते हुए तनिक गुनगुना भर लेते हैं - " फूलों के रंग से, दिल की कलम से, लिखी तुझे रोज पाती .. कैसे बताऊँ, किस-किस तरह से तू मुझको सताती ..~~~" .. बस यूँ ही ...❤
जी हजूर
Deleteसाहिब !!! आपका FB गायब हो गया है ? या हर बार धमकी देते-देते आपने मुझे Unfriend कर दिया है 🙄🤔
Deleteआपका ना तो FB दिख रहा है और नहीं Messenger 😒
वैसे आज रात 8 बजे समय और मौका मिले तो google पर Air Dehradun को search करके आकाशवाणी, देहरादून से मुझे झेल लीजिएगा 12-13 मिनट .. बस यूँ ही ...
मुआफी चाहूंगा देर से आया लेकिन झेले तो गांधी और नेहरू जा रहे हैं हजूर आज भी हम जैसों के साथ पटेल, बोस और सिंह के लिए आप हैं ना हजूर और बड़े हजूर भी :) फेसबुक बंद किया हुआ है ४ जून के बाद शायद खुले ५४३ पार होगा तो उसके बाद ही :)
Deleteवैसे तो .. देर से आना तो हमारे देश की परम्परा ही है .. शायद ...
Deleteआपके ५४३ और ४ के साथ वाली प्रतिज्ञा से हमारे देश या कम से कम उत्तराखंड या नहीं तो अल्मोड़ा को तो एक नए भीष्म पितामह की प्राप्ति हो गयी है .. शायद ...
रही बात झेलने-झेलाने या फिर झल्लाने की, तो न्यूटन के गति का पहला नियम सर्वत्र लागू होता है .. शायद ... कुछ महान विभूतियों ने और उनकी औलादों ने कल भी व आज भी अपने से ज्यादा या बेहतर क्षमता वाले लोगों को दबा कर या झेला कर रखने की कोशिश की और ऐसी परम्परा बनाए रखी है, तो झेलना भी तो उन्हें ही पड़ेगा ना .. शायद ...🙏
जी हजूर आप सही हैं और मोदी जी सही है बाकी हम सब हैं और चोर है अब है तो है | बुरा मत मानियेगा हमे खुद को चोर कहा है |
Deleteअजी साहिब ! .. आप भी ना कहाँ चोर और सिपाही .. ओह ! .. सॉरी ! .. सिपाही नहीं, सही के चक्कर में पड़े हैं .. वो और हम-आप को उनसे जोड़े बैठे या खड़े या जो भी हैं, तो ये बेमानी बातें हैं .. शायद ... कहाँ वो लोग .. चाहे जो भी हों .. "हरु" हों या "ओदी" हों, वो सब के सब सुरक्षा दल के बीच चलने वाले लोग हैं और .. हम-आप जैसे लोग तो बस्स ! .. तथाकथित सुदर्शन चक्र के भरोसे रहने वाले लोग हैं .. शायद ...
Deleteइतनी भी पीड़ा और बीड़ा मत उठाइए कि पहाड़ों के भूस्खलन और भी ज्यादा होने लग जाएँ .. मस्त रहिए .. भाभी जी के साथ-साथ हम सभी के लिए भी प्रेमपरस्त रहिए .. बस यूँ ही ...
चलिए .. जल्दी से अपनी दाढ़ी-मूँछों की फुलवारी में एक मुस्कान का फूल खिला दीजिए, ताकी हम सभी सुवासित हो जाएँ ..🙃🙃🙃😀😀😀
हजूर अब तो ५४३ पार की खबर ही ला पायेगी मुस्कराहट |
Delete😀😀😀 मने तथाकथित समाज ४ जून से आपकी दो जून की रोटी-लँगोटी और त्रिशूल-कमण्डल की व्यवस्था हिमालय की चोटी पर कर दे ? .. यही बोल रहे हैं ना आप ? .. शायद ...
Deleteवैसे तो उसके अंकों के उलट संख्या "३४५" से भी कोई पार हो जाएगा, किसी का बँटाधार हो जाना है, फिर काहे आप अपनी मुस्कान त्याग के अपना मन और तन सुखाये हुए हैं .. एगो दुबरकी (एक दुबली) चमगादड़ की तरह ... साहिब !!! .. ठिठिआइए ना जी महराज (महाराज) .. 😀😀😀
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ...
Deleteसुंदर मगर भ्रम तो है
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका .. भ्रम को स्वीकारने के लिए ...🙏
Deleteवाह ! विज्ञापनों के इस युग में एक सच की तलाश करती सुंदर रचना
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ...
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