"कलावती" नाम कम से कम समस्त हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए तो एक जाना-पहचाना नाम है, जो पाँच अध्यायों वाली सत्यनारायण स्वामी की कथा की केन्द्रीय नायिका है। साथ ही सर्वविदित है, कि भारत के कई राज्यों में वैदिक पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि को प्रत्येक विवाहिता व पतिव्रता सधवा हिन्दू महिला द्वारा लगभग बारह-तेरह घन्टे का निर्जला उपवास रख कर लोक मान्यताओं के आधार पर अपने पति की लम्बी आयु के लिए "करवा चौथ" का व्रत किया जाता है और .. शाम में चाँद के उगने पर चाँद को अर्घ्य देकर अपने-अपने पति लोगों के हाथों से ही पानी पीकर व्रत तोड़ती हैं, जिनमें तथाकथित पढ़े-लिखे पति लोग भी शामिल होते हैं .. शायद ...
हर वह व्यक्ति जो स्वयं को आस्तिक और सनातनियों के वंशज मानते हुए अपने आप को हिन्दू धर्मावलम्बी कहने में गर्व महसूस करते हैं, वे लोग अपनी संतानों को अवश्य ही सत्यनारायण स्वामी की कथा के आधार पर "कलावती" के पति की नैया के डूबने के कारण और फिर उसके उबरने की युक्ति व विधि की विधिवत चर्चा करते हैं और तथाकथित सभ्य-सुसंस्कृत महिलाएँ भी अपने परिवार की युवतियों के समक्ष "करवा चौथ" व्रत की महिमा के गुणगान के साथ बखान करने से नहीं चूकतीं हैं .. शायद ...
परन्तु इसी धरती पर जन्मीं एक बालिका .. जो ना कभी "करवा चौथ" जैसे व्रत-उपवास कीं और ना ही "कलावती" वाली कथा को सुनीं-जानीं .. ना ही मोक्ष प्राप्ति के लिए तथाकथित पुत्र रत्न के लिए बावली हुईं और ना ही किसी विदेशी से शादी करने से उनकी नाक कटी .. जिन क्रिया-कलापों की अवहेलना आज भी अमूमन हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी व सभ्य-सुसंस्कृत समाज में भी की जाती हैं।
फिर भी आज वर्षों बाद भी उन महिला का नाम विश्व पटल पर आदर के साथ अंकित है और जब तक धरती पर विज्ञान रहेगा, तब तक वह नाम अमर भी रहेगा .. शायद ...
उनकी उपलब्धियों में से सबसे बड़ी उपलब्धि है .. उनके साथ-साथ उनके एक ही परिवार के सदस्यों को पाँच-पाँच नोबल पुरस्कार की प्राप्ति होनी .. इसके बारे में जब अधिकांश तथाकथित पढ़े-लिखे अभिभावक ही अनभिज्ञ हों, तो अपनी संतानों से इनकी चर्चा करने की चूक (?) कैसे कर सकते हैं भला ? जिन्हें मालूम भी है .. वे लोग भी इन घटनाओं को इसी धरती की एक महत्वपूर्ण घटना होने के बावजूद .. विदेशी मानते हुए उनसे दूरी बना कर अपने धर्म-सभ्यता-संस्कृति बचे रहने की बात सोचते हैं .. शायद ...
दरअसल आज ही के दिन .. 7 नवम्बर को वर्ष 1867 में एक यूरोपीय देश- पोलैंड में मैरी स्क्लाडोवका (Maria Salomea Skłodowska) का जन्म हुआ था, जो बाद में दूसरे यूरोपीय देश- फ़्रांस के प्येर क्यूरी (Pierre Curie) से प्रेम-विवाह कर के "मैरी स्क्लाडोवका क्यूरी" हो गयीं थीं। जिन्हें रेडियम की खोज करने के कारण विज्ञान से जुड़े लोग जानते हैं या फिर अधिकांशतः अंक प्राप्ति के लिए पढ़ने वाले विद्यार्थीगण मैडम क्यूरी या मैरी क्यूरी के नाम को रटते हैं।
प्रसंगवश .. वैसे तो शादी के बाद पत्नी के नाम के साथ पति के उपनाम के जुड़ जाने जैसा प्रचलन हमारे देश में भी है। हिमानी भट्ट से हिमानी शिवपुरी बन जाने की हिमानी शिवपुरी जी से सम्बन्धित जिस बात की चर्चा अपनी बतकही "अँधेरे से डरता हूँ मैं ..." में हमने की भी है .. बस यूँ ही ...
सर्वविदित है कि भौतिक और रसायन विज्ञान .. दोनों में ही मैरी क्यूरी की गहरी पकड़ थी। जिस वजह से वह दोनों विषयों में नोबेल पुरस्कार पाने वाली आज तक की पहली और आख़िरी वैज्ञानिक महिला हैं और शायद रहेगीं भी। उनकी दो बेटियों में से एक- आइरीन (इरेन जुलियो क्यूरी) और उनके पति- जीन फ्रेडरिक जूलियट-क्यूरी को भी संयुक्त रूप से "प्रेरित रेडियोधर्मिता" की ख़ोज के लिए रसायन विज्ञान में और दूसरी बेटी- इव (एव डेनिस क्यूरी लाबौइस) के पति हेनरी रिचर्डसन लाबौइस जूनियर को "शांति" के लिए नोबेल पुरस्कार 'यूनिसेफ' ( UNICEF ) की ओर से मिला है।
दरअसल पोलैंड में तत्कालीन चलन के मुताबिक महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा पर पाबंदी होने के कारण आगे भौतिकी और गणित की पढ़ाई के लिए फ़्रांस की राजधानी- पेरिस जाकर 'डॉक्टरेट' करने वाली वह पहली महिला थीं। साथ ही पेरिस विश्वविद्यालय में 'प्रोफ़ेसर' बनने वाली भी पहली महिला थीं। यहीं उनकी मुलाक़ात उनके प्रेमी सह भावी पति- पियरे क्यूरी से हुई थी।
इस वैज्ञानिक दम्पती ने पोलोनियम ( Polonium ) की ख़ोज की थी, जिसका इस्तेमाल चिकित्सा विज्ञान में एक घटक के रूप में किया जाता है। वह "रेडियोसक्रियता" (Radioactivity) की भी खोज की थीं, जिसके लिए उन्हें, उनके पति- पियरे क्यूरी और हेनरी बैकेरल को संयुक्त रूप से भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला था। बाद में कुछ ही महीने बाद पति- पियरे क्यूरी की मृत्यु के बाद उन्होंने आंद्रे लुई डेबिरने ( André Louis Debierne ) की सहायता से रेडियम (Radium) की भी खोज की थीं और रेडियम के शुद्धीकरण (Isolation of Pure Radium) की ख़ोज के लिए रसायनशास्त्र का भी नोबेल पुरस्कार मिला था।
मैरी क्यूरी से जुड़ी उपरोक्त और इनके अलावा अन्य विस्तृत जानकारियाँ पाठ्यक्रम की पुस्तकों में या अन्य सम्बंधित पुस्तकों में या फिर 'गूगल' पर तो उपलब्ध हैं ही .. तो .. आज की अपनी अनर्गल बतकही को आप सभी सभ्य-सुसंस्कृत, बुद्धिजीवी, सुधीजन के समक्ष केवल इस प्रश्न से समाप्त करते हैं कि .. "क" से कलावती, करवा चौथ या क्यूरी ? .. बस यूँ ही ...
कलावती से क्यूरी तक के लिये बधाई | कलाकंद खाया जा सकता है |
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका .. पर .. बछड़े के हिस्से के ज़बरन दुहे गए दूध से बने मानव निर्मित "कलाकंद" ही क्यों भला .. प्रकृत्ति प्रदत "केला" क्यों नहीं 🤔🙄😐
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