Wednesday, August 23, 2023

वांछा की विसर्पी लताएँ ...

जीवन-डगर के 

एक अर्थहीन 

मोड़ पर किसी,

मिल जाना 

अंजाना 

किसी का कभी,

बस यूँ ही ...

चंद पल,

चंद बातें,

चंद मंद-मंद 

मुस्कुराहटें,

चंद स्पंदन की 

अनसुनी आहटें,

पनपा जाती हैं

क्षणांश में

हौले से

एक कोमल 

अर्थपूर्ण अंकुरण

अंजाना अपनापन का

मन में,

पनपने के लिए,

चंद सम्भावनाएँ लिए

भावनाओं की 

आरोही लताएँ,

वांछा की 

विसर्पी लताएँ,

भरसक .. 

बरबस .. 

तत्पर ...

लिपट जाने के लिए

अपने सुकुमार

लता-तंतु के सहारे

अथक ..

अनायास ..

अनवरत ...

सोचों के ठूँठ पर .. बस यूँ ही ...





4 comments:

  1. हा हा बिच्छू घास का पत्ता भी नजर आ रहा है चित्र में | बस यूं ही |

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    1. जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. साहिब !! .. आप भी ना .. 😃😃😃 इतु सी बात भी नहीं समझते .. ये सोचों की ठूँठ है ना साहिब .. यहाँ तो कुछ भी उग सकता है ना .. वैसे भी मुझे तो पहचान नहीं इसकी, पर इसका नाम भर ही बिच्छू घास है .. आपको तो मालूम ही होगा कि पहाड़ी क्षेत्र में उगने वाला यह घास अपने चिकित्सकीय गुणों से भरा पड़ा है।
      वैसे भी अगर ये ज़हरीला भी होता तो अपने देश-समाज में सुधा-गरल एक साथ के तर्ज़ पर तथाकथित शंकर जी चाँद और गंगा के साथ साँप को धारण किए हुए हैं और पूजनीय भी हैं .. तो उगने दिजिए बिच्छू घास को भी .. हँसिए मत "हा हा" बल्कि सम्मान किजिए बस यूँ ही ... 🙄🤔
      😂😂😂😂

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  2. बहुत सुंदर,भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ अगस्त २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका ...

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