Monday, March 13, 2023

पर नासपीटी ...

टहनियों को
स्मृतियों की तुम्हारी
फेंकता हूँ 
कतर-कतर कर 
हर बार,
पर नासपीटी
और भी कई गुणा 
अतिरिक्त
उछाह के साथ
कर ही जाती हैं
मुझे संलिप्त,
हों मानो वो
टहनियाँ कोई
सुगंध घोलते
ग़ुलाबों की .. शायद ...

काश ! .. हो पाता
सहज भी 
और सम्भव भी,
फेंक पाना एक बार
उखाड़ कर
समूल उन्हें,
पर यूँ तो 
हैं अब
असम्भव ही,
क्योंकि ..
जमा चुके हैं जड़
उनके मूल रोमों ने 
समस्त शिराओं 
और धमनियों में
हृदय की हमारी .. बस यूँ ही ...


6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 14 मार्च 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को मंच प्रदान करने के लिए ...

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  2. बहुत बढ़िया बतकही।

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  3. जी ! .. 🙂
    नमन संग आभार आपका ...🙏

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  4. हृदय की धमनियों और शिराओं मे जड़ जमा चुकी यादों को भला बाहर फेंकना ही क्यों.....
    जगह दे ही दें इन्हें मन मस्तिष्क में भी...शायद...
    लाजवाब सृजन ।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ... अब तो ये इस बतकही के उस पात्र की मनोदशा पर निर्भर करेगा .. शायद ...

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