Saturday, August 7, 2021

एक अदद .. सुलभ शौचालय ...

काश !!! ... किसी ..
शैक्षणिक कार्यशाला के तहत 
बुलायी जाती एक बैठक और
फ़ौरन गठित कर एक समिति  
बुद्धिजीवियों की, लेने के लिए
मार्गदर्शन उनसे किसी विशेष,
बदलाव परियोजना के बारे में,
ताकि .. 'MBBS कोर्स' में ...
पढ़ाई जाती चार सालों तक 
हनुमान चालीसा विस्तार से 
और किसी महावीर मंदिर में 
एक वर्षीय 'इंटर्नशिप' के तहत,
'जूनियर डॉक्टरों' से फिर ..
गवाए जाते हनुमान चालीसा ..
झाल, ढोल, मंजीरे के साथ,
बैठा के ताकि .. सार्थक हो जाती 
उनकी पढ़ाई और सार्थक हो पाता
पावन हनुमान चालीसा भी ...
"नासै रोग हरै सब पीरा, 
 जपत निरंतर हनुमत बीरा।"

ताकि .. पढ़ाई जाती भूगोल की कक्षा में,
शेषनाग के बारे में विस्तार से, 
टिकी है पृथ्वी फन पर जिनके।
पढ़ायी जाती तहत इतिहास के 
रामायण और महाभारत जैसी
सारी पावन पौराणिक कथाएँ।
पाँच वर्षीय 'आर्किटेक्ट' के 
'कोर्स' में भी की जाती व्याख्या 
विस्तार से प्रभु विश्वकर्मा जी की  - 
"बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी। 
प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च
विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापति।" 
और गवाए जाते सभी से दीक्षांत समारोह में 
मंच पर कतारबद्ध समवेत स्वर में -
"ऊँ आधार शक्तपे नम:। ऊँ कूमयि नम:।
ऊँ अनन्तम नम:। ऊँ पृथिव्यै नम:।
ॐ श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नमः।"
'पिरियोडिक टेबल' रसायन विज्ञान वाली, 
उतरवा कर हरेक स्कूल-कॉलेज की दीवारों से, 
लटकायी जाती ज्योतिष विद्या वाली कुण्डलियाँ।

ताकि .. कर दी जाती फिर तो न्यूटन, 
आर्कमीडिज्, गैलीलियो, डार्विन,
जैसों की ऐसी की तैसी ..
और हाँ .. कणाद, आर्यभट, वाग्भट ..
इन सब की भी ऐसी की तैसी।
दोहा, चालीसा, व्रत कथाएँ ही
गूँजा करती कक्षाओं में हर कहीं।
'PCM'* या 'PCB'* को, 
राय से सभी की, की जाती 
'BVM'* से विस्थापित भी कभी।
बैठक विसर्जित होने से पहले,
सभी के उठ के चलते-चलते,
मन्दिरों में प्रभु के भोग-समय,
भोग-कक्ष संग कई दफ़ा, 
कई जगह शयन-समय, शयन-कक्ष की 
तरह ही क्यों ना भक्तों के भोगों को 
जम कर जीमने वाले भगवानों के लिए भी,
स्वच्छ भारत अभियान के तहत,
मंदिरों में भी आधुनिकतम एक अदद ..
सुलभ शौचालय बनवाने का भी निर्णय लिया जाता .. बस यूँ ही ...


【 * - PCM = Physics, Chemistry, Mathematics.
    • - PCB = Physics, Chemistry, Biology.
    • - BVM = Bramha, Vishnu, Mahesh. (ब्रह्मा,           विष्णु,महेश) 】.    











                      

Friday, August 6, 2021

ससुरी ज़िन्दगी का ...

(१)
निगाहें ठहरी हुईं ...

है किसी रेत-घड़ी-सी 
.. बस यूँ ही ...
ज़िन्दगी हम सब की,
.. शायद ...
दो काँच के कक्षें जिसकी, 
हो मानो जीवन-मृत्यु जैसे, 
जुड़े संकीर्ण गर्दन से, एक साँस की।

टिकी हो नज़रें जो गर हमारी 
ऊपरी कक्ष पर तो हर पल ही ..
कुछ खोती-सी है ज़िन्दगी
और .. निचली कक्ष पर हों 
निगाहें ठहरी हुईं जो अपनी
तो .. हर क्षण कुछ पाती-सी 
है ये .. हमारी ज़िन्दगी।

हमारी नज़रों, निग़ाहों, 
नज़रियों, नीयतों के
कण-कण से ही हर क्षण
तय हो रही है ये ..
हर पल सरकती-सी,
कुछ-कुछ भुरभुरी-सी ..
पिंडी हमारी ज़िन्दगी की .. बस यूँ ही ...


(२) 
ससुरी ज़िन्दगी का ...

आ ही जाता है हर बार,
हर पल तो .. बस यूँ ही ...
एक लज़ीज़ स्वाद .. 
ससुरी ज़िन्दगी का। 

हो अगर जो बीच में
बचा एक कतरा भी
आपसी विश्वास का।

हाँ .. एक विश्वास .. हो जैसे ..
बीच हमारे ठहरा हुआ,
ठीक ... 'टोस्टों' के बीच 
पिघलते "अमूल" मक्खन की,
वर्षों से कायम,
गुणवत्ता-सा .. शायद ...


(३)
पल में पड़ाव ...

खोती ही तो 
जा रही है, 
पल-पल, 
पलों में ज़िन्दगी।

ना जाने पल भर में,
किस पल में ..
ज़िन्दगी के सफ़र के 
किस पड़ाव पर
ठहर सी जाए ज़िन्दगी।

कोई अंजाना पड़ाव,
या एक अंजाना ठहराव ही
कब मंजिल बन जाए।
यूँ ..  ना जाने कब, किस 
पल में ये पड़ाव आ जाए ?
और .. इस सफ़र का मुसाफ़िर 
बस .. .. .. वहीं ठहर-सा जाए .. बस यूँ ही ... 




Thursday, August 5, 2021

वो .. एक मर्दानी औरत ...

लम्बे, घने .. अपने बालों-सी
लम्बी, काली, घनेरी अपनी 
ज़िन्दगी से हैं अक़्सर चुनती;
रेंगती, सरकती हुई अपनी ही
पीड़ाओं की सुरसुराहट भी, 
ठीक .. बालों की जुओं-सी .. 
सबों के बीच भी .. शायद ... 
वो .. एक अकेली औरत .. बस यूँ ही ... 

मिल भी जाएं जो ख़ुशी कभी
तो .. देर तक टिकती भी नहीं,
जबकि पड़ती भी है चुकानी भले ही,
एक अदद उसकी तो उसे क़ीमत भी।
क्षणिक हो .. या फिर ..
औपचारिक ही सही,
पर होती है गुदगुदाती ख़ुशी-सी, 
बदले में कुछ अदा कर के भले ही, 
बेमन से चाहे या 
ख़ुशी-ख़ुशी ही सही,
ठीक .. वापस मिले हुए 
जूतों की ख़ुशी-सी, 
जूता छुपाई वाली रस्म जैसी .. बस यूँ ही ...

ज़िन्दगी में भला जीत कर भी,
चलती है जीते जी कब उसकी ?
भूले से भी जो अगर कभी,
अपने सुहाग से पहले ही
ढूँढ़ भी ले जो वो पहले कहीं,
दूधिया पानी में डूबी-खोई ..
वो एक विशेष अँगूठी ...
अँगूठी ढूँढ़ने वाली रस्म वाली .. बस यूँ ही ...

कहलाती तो है यूँ अर्द्धांगिनी,
पर इसके हिस्से .. सात फेरों में भी 
होती हैं आधे से कम .. 
केवल तीन फेरों में ही आगे की पारी।
मतलब - यहाँ भी बेईमानी, मनमानी।
फेरे में जीवन के फिर .. फिर भी, 
सात फेरों के बाद होती हैं वो ही घिरी।
हैं चटकते जब सातों वचन सात फेरों के,
अक़्सर .. होकर बदतर .. किसी काँच से भी।
मसलन - गयी नहीं गर अब तक आदतें जो, 
सारी बुरी हमारी तो ..  हैं मानो जैसे .. 
उड़ रहीं सरेआम धज्जियाँ 
छठे फेरे के छठे वचन की .. बस यूँ ही ...

सातवें वचन को तो हम ही हैं रोज तोड़ते,
जब-जब हम अपनी  बतकही* की 
दुनिया में हैं विचरते, विचार करते;
तब-तब तो हम तन्हां ही तो अपनी 
बतकही के साथ ही तो .. हैं
केवल रहते और .. जाने-अंजाने 
आ ही तो जाती हैं फिर, पति-पत्नी के 
संबंधों के बीच में ये  बतकही सारी .. बस यूँ ही ...

चलती भी है या कभी चल भी गयी
जो .. जाने-अंजाने, भूले से भी,
अगर किसी घर-परिवार में उसकी,  
तो कहते हैं उसे सारे मुहल्ले वाले,
सगे-सम्बन्धी या जान-पहचान वाले भी,
कि है  वो .. एक मर्दानी औरत .. बस यूँ ही ... 

【 बतकही - अपनी रचना (?) .. अपनी सोच। 】*




Tuesday, August 3, 2021

नीयत संग नज़रिया ...

आज अपनी बतकही - "नीयत संग नज़रिया ..." के पहले एक छोटी-सी बात ... अक़्सर हमारे सभ्य समाज में टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों को देखने के आधार पर, उसे देखने वाले उन दर्शकों की मानसिकता या उनके वर्ग का वर्गीकरण भी हम लोग झट से तय कर लेते हैं .. शायद ...
मसलन - 'स्टार स्पोर्ट्स चैनल' देखने वाले युवा या वयस्कों को समाज में सभ्य माना जाता है। पर हर बार इस मुखौटेधारी समाज में, यह सच नहीं होता है। वहीं लोगबाग 'फैशन चैनल' देखने वाले युवा या प्रौढ़ वर्ग को बड़े ही व्यंग्यात्मक ढंग से देख कर मुस्कुराते हैं .. शायद ...
मानो .. उनकी मुस्कान बोल रही हो कि .."बच्चू, तुम भी चरित्रहीन ही हो, जो ये सब ... " अभी तो लोग तपाक से वर्तमान में चर्चित .. "कुंद्रा" नामक उपनाम का हवाला देकर और भी हिक़ारत भरी नज़रों से देख कर मुस्कुराते हैं; पर इस बार भी इस मुखौटेधारी समाज में, यह सच नहीं होता है .. शायद ...
अब जरूरी तो नहीं कि रामायण  पढ़ने वाला या टीवी पर उसे 'सीरियल' की शक़्ल में देखने वाला हर इंसान राम ही हो और महाभारत  देखने वाला कोई इंसान कौरव ही हो .. शायद नहीं .. बस यूँ ही ...

नीयत संग नज़रिया ...

'टीवी' के पर्दे पे,
साथ चाय की चुस्की के,
'स्टार स्पोर्ट्स चैनल' पर
'स्लीवलेस स्पोर्ट टी-शर्ट' के 
साथ-साथ 'मिनी स्कर्ट' में
'बैडमिंटन' खेलती गाहे-बगाहे,
"पुसर्ला वेंकट सिंधु",
या "साइना नेहवाल" 
या फिर "कैरोलिना मारिन" के
और कभी 'शॉ‌र्ट्स' में "एश्ले बार्टी"
या 'स्कॉर्ट्स' में खेलती
"कैरोलिना प्लीस्कोवा" जैसी
'विम्बलडन' प्रतियोगियों के, 
शायद .. केवल खेल ही हैं दिखते, 
संग-संग 'शॉट्स', 'स्ट्रोक', 'शटल' या 
'टेनिस बॉल' या फिर 'स्कोर बोर्ड' के।
ना कि .. तर-बतर पसीने से
अर्द्धनग्न उघड़े अंग उनके।
हो अगर .. सही नीयत संग
नज़रिया हम सभी के .. शायद ...

उलट मगर इसके, 
'फैशन चैनल' पर 'टीवी' के,
अक़्सर .. 'कैट वॉक' करती 
'रैंप' पे या फिर दिखने वाली
मदमायी भंगिमाओं में
'मॉडल्स' सह 'कैलेंडर गर्ल्स' - 
"नटालिया कौर" या
"नरगिस फाखरी" या फिर ..
"एयशा मैरी" के 
अर्द्धनग्न बदन उघड़े, 
कभी गीले, तो कभी सूखे, 
उनके बदन के बदले,
परिदृश्य में दिखती हैं हमें
प्रायः झीलों, सागरों, पहाड़ों,  
वनों, फूलों-लताओं, पौधे-पेड़ों 
इत्यादि वाली प्राकृतिक सौन्दर्य की
या नायाब वास्तुकला के नमूने वाली
कई सारी छटाएँ मनभावन।
हो अगर .. सही नीयत संग
नज़रिया हम सभी के .. शायद ...




Monday, August 2, 2021

चंचल चटोरिन ...

ऐ ज़िन्दगी !
मेरी जानाँ ज़िन्दगी !!
जान-ए-जानाँ ज़िन्दगी !!!

चंचल चटोरिन 
किसी एक
बच्ची की तरह
कर जाती है,
यूँ तो तू चट 
चटपट,
मासूम बचपन 
और ..
मादक जवानी,
मानो किसी 
'क्रीम बिस्कुट' की 
करारी, कुरकुरी, 
दोनों परतों-सी।

और फिर .. 
आहिस्ता ...
आहिस्ता ....
चाटती है तू
ले लेकर
चटकारे,
लपलपाती, लोलुप
जीभ से अपने,
गुलगुले .. 
शेष बचे बुढ़ापे के 
'क्रीम' की मिठास,
मचलती हुई-सी,
होकर बिंदास .. बस यूँ ही ...